आज पूरा देश शिक्षक दिवस मना रहा है। सभी अवगत होंगे कि यह दिन देश के दूसरे राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन टीचर्स डे के रूप में मनाया जाता है।
हमारे और सम्पादक के लिए विशेष गौरव का क्षण है। वह ये है कि जिनके नाम से पूरे देश में शिक्षक दिवस मनाया जाता है वो स्वयं हमारे उस परिसर में पढ़ाये हैं, उसकी बागडोर सम्भाले हैं, जहाँ से हमें शिक्षित होने की दीक्षा मिली।
डॉ राधाकृष्णन सन 1939 से 1948 तक काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति पद को सुशोभित किया। इसी बीच में सन 1942 का आंदोलन हो गया। पूरा देश गांधी जी की आवाज़ पर सबकुछ छोड़कर आजादी की लड़ाई में कूद रहा था।
ऐसे में क्रांतिधर्मिता की राजधानी बी एच यू के स्टूडेंट्स कैसे चुप रह जाते। छात्रों का झुण्ड सिंहद्वार पर पहुँचने वाला होता है।
तभी सूचना तत्कालीन कुलपति डॉ राधाकृष्णन को होती है। वो सारा काम छोड़कर तुरन्त सिंहद्वार पहुँच जाते हैं। सभी आन्दोलनकारी छात्रों रोकते हैं।
सभी को हिदायत देते हैं। यह कि सभी छात्रों का एक ही आंदोलन है, वो है पढ़ाई करना। राष्ट्रनिर्माण शिक्षा से ही होना है। देश तो बहुत जल्द आज़ाद होने जा रहा है।
आज़ादी के बाद भारत को प्रबल बनाने के लिए आपका क्या लक्ष्य है? जब उन्होंने यह प्रश्न रखा तो हजारों की भीड़ में सन्नाटा छा गया था।
उन्होंने आगे कहा कि प्यारे बच्चों, इस विश्वविद्यालय की स्थापना का ध्येय ही है राष्ट्रनिर्माण की नींव बनना। आज़ादी के बाद क्या बी एच यू के लोग भारत की बुनियाद बनें, यह इस परिसर का लक्ष्य है।
लगभग आधे घण्टे के व्याख्यान में डॉ राधाकृष्णन ने अपनी बात समझा दी थी। उनकी वाणी में उस दिन सरस्वती का वास था।
जब हमारा देश आज़ादी का तराना गा रहा था तो उस समय देश को आल इंडिया रेडियो से रघुपति राघव राजाराम की स्वतंत्र धुन सुनाने वाले बिस्मिल्लाह खाँ से लेकर आचार्य जे बी कृपलानी तक, सभी बी एच यू के या तो छात्र रहे या शिक्षक थे। या तो मानद उपाधि प्राप्त किये थे।
जब देश की पहली अंतरिम सरकार बनी थी तब उस समय देश की संसद में 267 सांसद बी एच यू से निकले थे।
जब देश आज़ाद हुआ तो अंग्रेजों के जाने के साथ ही अंग्रेजी इंजीनियर भी चले गये थे। तो उस समय बी एच यू के बेंको (बनारस हिंदू इंजीनियरिंग कॉलेज) जो आज आई आई टी बीएचयू है, के पढ़े इंजीनियर स्नातकों ने देश के बुनियादी ढाँचे की नींव रखी।
बिजली सड़क पानी सभी की सप्पलाई BHU के पढ़े इंजीनियर्स के बदौलत पूरी हो सकी।
आज़ादी के बाद देश का पहला सरकारी खादी आश्रम बी एच यू के प्रोफेसर रहे आचार्य जेबी कृपलानी ने शुरू कराया।
आज आधी सदी से ऊपर हो गए हैं। यह घटना दस्तावेजों में दर्ज है। हमारा गर्व बढ़ जाता इस घटना को पढ़कर।
कितने विज़नरी लोग थे वो, जो डंके की चोट पर आंदोलन को सकारात्मक दिशा दे देते थे।
आज भारत के लोकतंत्र की हर ईंट डॉ राधाकृष्णन और बी एच यू का ऋणी है।