आज अमृता आईं। इन्हें देख आश्चर्य और स्नेह के बादल एकसाथ मिले। उनकी बोली के एक एक शब्द पम्पोर की फिजा में खुश्बू घोल रहे थे। वातावरण में कुहासा और कश्मीरी केसर की सुगंध बिखर चुकी थी। कश्मीर की धरती केसरिया चादर हटा रही थी। उस केसर के खेत में खड़ीं अमृता प्रीतम का फिरोज़ी लिबास प्रकृति का कंट्रास्ट पूरा कर रहे थे। उनके चेहरे की झुर्रियों की सिलवटें बहुत सलीके से सरियायी गयी थी।
मैने उनका सज़दा किया। मेरे लिए तो मानो ख़ुदा ही मिल गया हो। खुशी को समेटते हुए पूछा आप अपनी मोहब्बत के किस्से सुनाइये। बाक़ी तो सब सुनाते हैं। आपका पहाड़ों से गहरा नाता रहा है। बंटवारे में अपनी जन्मभूमि को छोड़कर देवभूमि उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में ज़िन्दगी बिताई। पहाड़ों के ईश्क या पहाड़ों से ईश्क के किस्से ज़रा हमें सुनाइये।
अमृता बताने लगीं।
मेरी ज़िन्दगी बहुत असाधारण नहीं है। ये भी एक सामान्य हिंदुस्तानी औरत की तरह ही है। मेरी ज़िंदगी को रँगीन करने वाले का नाम है इमरोज़। इमरोज़ न सिर्फ़ प्रोफेशनली कलाकार है बल्कि उनका मन भी कलात्मक है। उन्होंने मेरी ज़िंदगी में हर तरह के रंग भरे, वो भी बिना राग रंज के।
मेरी ज़िन्दगी के अध्यायों में मेरे पति प्रीतम सिंह का आना। फिर मुझसे उनका डी एन ए का जन्म होना। उसके बाद उनसे दूर होना। फिर साहिर का आना, उसका जाना। मेरी ज़िंदगी की सारी फिल्मों को इमरोज़ शांत होकर एक किनारे खड़े निहार रहे थे। शायद उनको इसी में कुछ नए रंग नज़र आ गए होंगे।
ख़ैर कुछ भी हो। खासकर हिंदुस्तान में न सिर्फ़ औरत को सामाजिक ढकोसलों की मर्यादा का चोला ओढ़ना पड़ता है बल्कि संवेदनशील मर्द भी इसके ज़द आते ही हैं। अमृता आगे बताती हैं इमरोज़ समाज के कमेंट्स को अपनी इमेज के आभूषण की तरह मुझको सजाया। असली मोहब्बत तो यही है, न! जो न कहा जाय, न मांगी जाय, न दी जाय; बस की जाय! मोहब्बत तो बस की जानी चाहिए, यह इमरोज़ ने समाज को बताया। मुझे ऊँचा उड़ने का हौसला दिया। उम्र के उस पड़ाव पर साथ दिया जब मेरा हुस्न ढल चुका है। झुर्रियों की सिलवटें पड़ गयी हैं।
असल में अमृता प्रीतम बनना तो बहुत आसान है। लेकिन वो मुकम्मल तभी बनती है जब उसकी जिंदगी में इमरोज़ जैसे रँगफरोश सजाते हैं। बिना किसी चाहत के अपनी चाहत लुटाते हैं। अमृता बनने से ज़्यादा ज़रूरी है कि इमरोज़ बना जाय। असल में इमरोज़ ही आधुनिक समाज के वो सच्चे भक्त हैं जो पत्थर को भगवान बना देते हैं।
उन्होंने मेरे सर पर हाथ फिराया। गालों को सहलाया। फिर जोरों की आवाज़ें आईं। और नींद टूट गई। सवेरा हो चुका था। सुनहरी धूप खिड़की से चेहरे पर पड़ रही थी। मन में वही केसर की सुगंध घुली जा रही थी। अब मन अपने इमरोज़ को ढूंढने लगा है।