हमारी पहचान हमारी योग्यता से नहीं बल्कि हमारे फैसलों से बनती है। योग्यता तो सिर्फ फैसले लेने के काबिल बनाती है। हैरी पाॅटर फिल्म के हिंदी संस्करण की एक सीरीज का यह प्रोफेसर डम्बलडोर का डायलाॅग निश्चित ही सियासत के संदर्भ में जरूर अमल होता है। सियासत में लिया गया हर फैसला बहुत अहम होता है। सियासतदारों के लिये गए गलत फैसले पीढ़ियों को रोने के लिए छोड़ा है और सही फैसला सदियों के लिए सुनहरा देश की बुनावट है।
दोनों ही उदाहरण हमारे सामने हैं। आजादी के 74वें साल में इन फैसलों की समीक्षा करना बेहद जरूरी है। इतने बड़े कालखण्ड में दो पीढ़ियां पार हो गईं।
बात गलत फैसले से ही शुरू करते हैं। यह था बंटवारे का फैसला। मुट्ठी से कम लोगों ने मिलकर देश बांटे। लेकिन उसके दुष्परिणाम आज तक हमारी आंखों से सामने से गुजरते हैं। देश की आजादी को बचाये रखने के लिए संसाधनों का बहुत बड़ा हिस्सा सुरक्षा पर खर्च हो रहा है।
वहीं दूसरी ओर सही फैसला और उसकी दिशा में अनुपालन करने से देश को विकास का रास्ता मिला। वो रास्ता दिखाने वाले रहनुमा बने पूर्व राष्ट्रपति डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम। लेकिन दिक्कत हमारे साथ हुई। हम तो अपने कदमों के नतीजे कहां समझ पाए और…2020 गुजरने को आ गया। स्वतंत्रता दिवस 74वीं सालगिरह के साथ कलाम साहब का विजन का आखिरी दशक समाप्त होने को आ गया।
2020 की मंजिल वैज्ञानिक और पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने तय की थी जिससे प्रेरित होकर योजना आयोग ने अपनी पंचवर्षीय योजनाओं से परे 2002 में भविष्य का खाका (विजन 2020) खींचा था। यह संभवतः बहुत बड़े अंतराल के बाद देश के राष्ट्रपति देश को विजन दे रहे थे, और उसे विजन को सरकार अपने पंचवर्षीय कार्यक्रम का हिस्सा बना रही थी। इसके पूर्व या बाद में राष्ट्रपति की बातें सरकार की व्याख्या से अधिक कुछ नहीं होती थीं। कलाम साहब के विजन में एक दशक की उपलब्धियों के आधार पर अगले दो दशकों की चुनौतियों को मापा गया था। सरकारी लक्ष्यों में राजनैतिक सुविधा के हिसाब से बदलावों के बीच, विजन 2020 उम्मीदों की एक सुनहरे भविष्य की तरह सुशोभित रहा है क्योंकि आर्थिक उदारीकरण के बाद के सालों में संभवतः यह एकमात्र राष्ट्रीय आधारभूत ढांचों को सही करने का एकमात्र दस्तावेज है जिसमें सटीक तर्क और संगत आकलन के साथ दूरगामी लक्ष्य तय किए गए थे।
दस्तावेज आज के लिए भले पुराना हो चुका है लेकिन अवसरों के आखिरी दशक पर निगाह डालने के लिए 2002 में तय किये गए लक्ष्यों राहों और मंजिलों का संदर्भ बहुत जरूरी और कारगर नजर आता है। कलाम साहब का विजन 2020 का कलाम नए नए रूप लिये बाद के दशकों में हमारे सामने आता रहा है।
जैसे, 2020 तक गरीबी दूर करने के लिए पंचवर्षीय योजना (2002) के बाद हर साल 8-9 प्रतिशत की विकास दर का लक्ष्य तय किया गया था। लेकिन हम यह विकास दर नहीं हासिल कर सके। 2020 तक बेकारी, भूख और गरीबी को पूरी तरह समाप्त करने का बड़ा लक्ष्य था क्योंकि तब तक जीवन प्रत्याशा दर 69 वर्ष तक पहुंच जानी थी।
इन सुनहरे सुहाने सपनों और चुभती सच्चाइयों के बीच की महीन पारदर्शी दीवार को समझना ही होगा। बिना समझे सिर्फ बातों से न तो कोई विजन सिद्ध होगा और ना ही सार्थक मंजिल मिलेगी। भारत अपने सबसे मूल्यवान आखिरी दशक की राह में तीन बहुत बड़ी चुनौतियों के सामने खड़ा है।
आर्थिक विकास यानी जीडीपी के मामले में 2020 में हम एकदम वहीं खडे़ हैं जहां चीन 2003-04 में खड़ा था। ग्लोबल निवेशकों से लेकर देशी कारोबारियों तक इस वैश्विक महामारी के आक्रमण के बाद तो किसी को यह उम्मीद ही नहीं है कि भारत अगले दशक में दस प्रतिशत यानी दहाई की विकास दर हासिल कर सकेगा।
एक आंकड़े के अनुसार भारत में हर साल साढ़े 5 करोड़ लोग बीमारी की वजह से गरीब हो जाते हैं, उनमें 72 प्रतिशत खर्च केवल प्राथमिक चिकित्सा पर है। सर्वे बताता है कि इलाज से गरीबी की 70 फीसद कारण महंगी दवाएं हैं। सर्वे बताता है कि भारत में इलाज का 70-80 फीसद खर्च गाढ़ी कमाई की बचत या कर्ज से पूरा होता है। बता दें कि शहरों में 1,000 रुपए और गांवों में 816 रुपए प्रति माह खर्च कर पाने वाले लोग गरीबी की रेखा से नीचे आते हैं।
जिंदगी बचाने या इलाज से गरीबी रोकने के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य नेटवर्क चाहिए जो पूरी तरह ध्वस्त है।
अगर हम हकीकत से आंख मिलाना चाहते हैं तो हमें स्वीकार करना पड़ेगा कि
- रोजगार की कमी और आय-बचत में गिरावट के बीच बीमारियां बढ़ रही हैं और गरीबी बढ़ा रही हैं।
-भारत में निजी अस्पताल बेहद महंगे हैं। खासतौर पर दवाओं और जांच की कीमतें बहुत ज्यादा हैं।
-अगले पांच साल में देश के कई राज्यों में बुजुर्ग आबादी में इजाफे के साथ स्वास्थ्य एक गंभीर संकट बनने वाला है।
इन हकीकतों को जानने के बाद हमें सवाल सरकार से पूछने का हक होना चाहिए। और ये सवाल कोई आसमानी नहीं हैं। बेहद सामान्य और जरूरी हैं। जब देश का नागरिक टैक्स भरने में कोई कोताही नहीं करता, हर बढ़े हुए टैक्स को हंसते हुए झेलता है, हमारी बचत पूरी तरह सरकार के हवाले है तो फिर स्वास्थ्य पर खर्च जो 1995 में जीडीपी का 4 प्रतिशत था वह 2017 में केवल 1.15 फीसद क्यों रह गया?
भारत की कॉर्पोरेट गवर्नेंस भी उतने ही बुरे दौर में है। कागजों पर सबसे अच्छे कानूनों के बावजूद पिछले एक दशक में कई बड़ी कंपनियों के निदेशकों ने हर तरह का धूर्तकरम किया और निवेशकों व कर्मचारियों के सपनों को तोड़ा है।
भविष्य कभी हमारे मन मुताबिक नहीं आता। तो, 2020 भी अफरातफरी और आर्थिक संकट के बीच बीत रहा है। 2020 का स्वतंत्रता दिवस हर एक को नींद से जागने का संदेश दे रहा है। हमें इस समय सब कुछ बदलने वाले तेज रफ्तार सुधारों की जरूरत है। एक देश के तौर पर हम समय के उस मोड़ पर हैं जहां वर्तमान कुछ नहीं होता। वक्त या तो तुरंत आने वाला भविष्य होता है अथवा अभी बीता हुआ कल (अमेरिकी कॉमेडियन जॉर्ज कार्लिन)। 2020 के स्वतंत्रता दिवस का पहला सूरज हमारे लिए सबसे निर्णायक उलटी गिनती की शुरुआत लेकर आया है, क्योंकि अवसरों के भंडार में और कीमती आज़ादी को और कीमती बनाने में अब केवल कुछ ही साल बचे हैं…
आजादी की हार्दिक बधाई!