भूले का घर लौटना

मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय पर कैबिनेट की लगी मुहर

वाराणसी : मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलकर एक बार फिर शिक्षा मंत्रालय करने का निर्णय मोदी कैबिनेट ने कर दिया। हिन्दू मान्यता के अनुसार बुधवार का दिन गणेश जी का है और ये बुद्धि, विद्या के देवता हैं। शायद भाजपा नीत मोदी सरकार इस आरोप को लगने के लिए ही गणेश जी के दिन ही कैबिनेट मीटिंग को शिक्षा के नाम समर्पित कर दिया।

बहु प्रतीक्षित नई शिक्षा नीति पर कैबिनेट की मुहर लगने के बड़े काम के साथ मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम पूर्ववत करने का “छोटा काम” भी किया गया। विशेषतः “मानव संसाधन विकास” से मेरा व्यक्तिगत रोचक अनुभव है।
कहना तो बहुत छोटे मुँह और बहुत बड़ी बात होगी लेकिन कहे बिना रहा भी नहीं जा रहा है।

बात 12 दिसम्बर 2011 की है। जब देश में वालमार्ट आ रहा था। एफ डी आई के तहत खुदरा बाजार में वालमार्ट की 51 प्रतिशत की हिस्सेदारी तय हुई थी। इसका विरोध तत्कालीन प्रमुख विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी कर रही थी। उन दिनों आज के मोदी के संसदीय क्षेत्र काशी के सांसद डॉ मुरली मनोहर जोशी हुआ करते थे। ये वही कद्दावर नेता हैं जिन्होंने शिक्षा मंत्रालय में कई विभागों और मंत्रालयों जोड़कर इसे मानव संसाधन विकास मंत्रालय किया था। उस वक़्त तो समझ नहीं थी लेकिन थोड़ा बहुत प्रश्न मन में उठता रहता कि शिक्षा को मानव संसाधन बनाने के पीछे क्या कारण रहा होगा?

शायद यही प्रश्न मन में काँटे की तरह चुभ रहा था। और संयोगवश हमने अपना कॅरियर भी प्रश्न पूछने वाला ही चुना था। तो, हम बात बता रहे काशी के तत्कालीन सांसद डॉ जोशी की। उक्त तिथि को एफ डी आई के विरोध में एक संगोष्ठी आयोजित थी। पहले यह संगोष्ठी बीएचयू के डॉ के एन उडप्पा सभागार में आयोजित होनी थी लेकिन बाद में सरकारी दबाव के कारण तत्कालीन कुलपति डॉ लालजी सिंह ने उक्त संगोष्ठी को कैंसिल कर दिया। खैर, वो संगोष्ठी कैम्पस के बाहर हुई।

संगोष्ठी में जो हुआ सो हुआ। इसके बाद जोशी जी पत्रकारों से रूबरू हुए। उसमें हमने भी उनसे प्रश्न पूछने का प्रयास किया लेकिन बड़के पत्रकारों के आगे हम पिछड़ जाते। तभी मेरे प्रयास को शिक्षा संकाय के प्रोफेसर हरिकेश सिंह ने देख लिया। उन्होंने सबको चुप कराकर जोशी जी का ध्यान मेरी ओर आकृष्ट कराया कि ये नवयुवक पत्रकार कुछ प्रश्न करना चाहता है।

जोशी जी ने बहुत ध्यान से प्रश्न को सुना। वैसे मेरा प्रश्न था- “सर, हम सब भारत में रहते हैं। जैसा कि सर्वविदित है कि भाजपा, संघ और आप स्वयं सनातन परंपरा और संस्कृति में अटूट विश्वास रखते हैं। तो, हमारी संस्कृति यह संदेश देती है कि जड़, चेतन, जीव, नदी, पेड़, पौधे आदि सबमें ईश्वर का वास है?”

जोशी जी ने कहा, “हाँ, तो”।

फिर हमने सवाल आगे बढ़ाया।

“तब सर, प्रबंधन या वाणिज्य हमें यह भी सिखाता है कि संसाधन हमेशा निर्जीव होता है। तो, जिस संस्कृति में पेड़, पौधे, पहाड़, नदियाँ; यहाँ तक कंकड़ कंकड़ में ईश्वर का वास मानते हैं तो ऐसी संस्कृति में जीते जागते “मानव” को “संसाधन” यानी निर्जीव बताना कहाँ तक उचित है? और यह कार्य सबसे जरूरी आयाम शिक्षा के साथ वो भी आप द्वारा किया जाना कितना जरूरी था?”

मेरा प्रश्न लगभग 3 मिनट चला होगा। मेरे चुप होने के बाद लगभग एक मिनट डॉ जोशी चुप थे। थोड़ी देर में उन्होंने अपना मौन तोड़ा, बस इतना ही कहा, अभी तुम बच्चे हो, आगे समझ में आएगा।

चूँकि वो समय जोशी के ख़िलाफ़ दल वाली सरकार का था। साथ ही जिसने यह प्रश्न पूछा उसका इतना बड़ा कद भी नहीं था कि उसका डाक्यूमेंटेशन भी किया जाता। खैर, वो बात आई और गई हो गयी।

उस बात के लगभग आठ साल बाद जब मोदी के पीएम बनने के बाद कस्तूरीरंगन कमेटी के एक माननीय सदस्य काशी आये तो हमने अपने मन की उपरोक्त बातों को फिर से बताया। धरती गोल है। इसका प्रमाण एक बार फिर हमको उस दिन हुआ। असल में वो सदस्य डॉ जोशी द्वारा नामित कराए गए थे। सदस्य महोदय ने यह भी बताया कि डॉ जोशी ने विशेष रूप से उनको कमेटी में जुड़वाया था कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम पुनः शिक्षा मंत्रालय हो जाये। क्योंकि शिक्षा मंत्रालय का नाम अटल जी के कार्यकाल में तत्कालीन एक हैवीवेट मंत्री के जोर से बदलवाया गया था। और उस बात का डॉ जोशी को अब तक दुःख है।

जब सदस्य महोदय ने यह बात हमें बताई तो मन ही मन खुश हुए। लगा कि शब्द वास्तव में ब्रह्म होते हैं। ये सब बातें कहीं दर्ज़ तो नहीं हैं। सब अपने सम्बन्धों, अनुभवों और ज़ेहन की दुनिया में कैद हैं। आज जब मोदी कैबिनेट ने शिक्षा मंत्रालय के नाम पर मुहर लगा दी तो एक बार 12 दिसम्बर 2011 की उक्त घटना एकदम से आँख के सामने आ गई। और लगा कि कोई भूला अपना वापस घर लौट आया है।

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