ऐतिहासिक प्रमाणों से वैज्ञानिकों ने पाया है कि पृथ्वी (Earth) पर हजारों सालों में एक बार खगोलीय विकिरण (Cosmic Radiation) की बारिश होती है. इस बारिश से पृथ्वी के वायुमंडल में नाइट्रोजन रेडियोधर्मी कार्बन 14 में बदलता है जो बाद में पेड़ों में अवशोषित होकर उनके छल्लों (Rings of Trees)में जमा हो जाता है. इनसे वैज्ञानिक इन घटनाओं के होने का तो पता लगा लेते हैं.
पृथ्वी के इतिहास में खगोलीय विकिरण (Cosmic Radiations) कि बारिश का रिकॉर्ड पेड़ों में दर्ज हो जाता है. विकिरण पृथ्वी की वायुमंडल (Atmosphere of Earth) से टकराते हैं जिससे नाइट्रोजन के परमाणुओं में बदलाव होता है और उससे कार्बन -14 नाम के रेडियोधर्मी परमाणु बनते हैं जिसे पौधे अवशोषित करते हैं और वे पेड़ों के छल्लों (Rings of The Trees) में जमा हो जाते हैं जिनसे वैज्ञानिकों को इस तरह की घटनाओं के होने का पता चलता है. लेकिन उनके लिए यह सबसे बड़ी पहेली यही है कि इस तरह के तूफान आते क्यों हैं. इसके कारण जानने के लिए वैज्ञानिकों कई तरह की व्याक्याओं को परखने का प्रयास किया लेकिन इसे अभी तक सुलझा ही नहीं पाए हैं.
कारणों का पता नहीं
इस तरह की बड़ी घटनाओं का मियाके घटनाएं कहा जाता है और ये हर हजार साल में एक बार होती हैं. लेकिन इसके कारणों का अभी पता नहीं चला है. इस विषय पर कई तरह के शोध हो रह हैं. लेकिन नए अध्ययन में पाया गया है कि इसके कारणों में से सुझाया गया सबसे बड़ा मत, सौर ज्वाला, इसकी सटीक व्याख्या नहीं कर पाएगा.
और ज्यादा जानने की जरूरत
इन तूफानों के आने के कारणों का पता लगाना आसान काम नहीं हैं. खास तौर पर जब हमारे पर इन घटनाओं के होने के बहुत ही पुष्ट प्रमाण नहीं हैं. ऑस्ट्रेलिया के क्वीन्सलैंड यूनिवर्सिटी के खगोलभौतिकविद बैन्जामिन पोप का कहना है कि हमें इस बारे में ज्यादा जानने की जरूरत है क्योंकि आज अगर इस तरह की घटना हुई तो बहु ही ज्यादा नुकसानदायक हो सकती है.
क्या क्या होगा नुकसान
ऐसी घटना होने पर वह हमारी तकनीक को नष्ट कर देगा जिसमें सैटेलाइट, इंटरनेट के तार, लंबी दूरी की तारे और ट्रांसफॉर्मर तक नष्ट हो सकते हैं. इसका वैश्विक अधोसंरचना पर अप्रत्याशित असर पड़ेगा. बेशक इतिहास में इस तरह के तूफान आने के संकेत हमें मिलते रहे हैं जिनसे रेडियोकार्बन बनता है जो पेड़ के छल्लों में रिकॉर्ड की तरह दर्ज हो जाता है.
खगोलीय विकिरण की बारिश का संकेत
खगोलीय विकिरण वैसे तो हमारे वायुमंडल से लगातार टकराते रहते हैं. और छोटी मोटी मात्रा में कार्बन-14 का निर्माण होता ही रहता है. जो पेड़ों में पहुंचता रहता है. लेकिन पेड़ों में जब बड़ी मात्रा में कार्बन-14 मिलता है तो इसका मतलब यही होता है उस साल खगोलीय विकिरण की बारिश हुई होगी.
सौर ज्वाला भी हो सकती हैं वजह
खोगलीय विकिरण की बारिश के कई कारण हो सकते हैं. इनमें से एक सौर ज्वाला भी माना जाता है. लेकिन इसके अन्य कारण भी बताए जाते हैं जिन्हें अभी तक पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सका है और ना ही अभी तक सौर ज्वाला को प्रमाणिक रूप से स्वीकार करने की स्थिति बनी है.
वैश्विक कार्बन चक्र
पेड़ों के छल्लों के आंकड़ों को समझने के लिए वैश्विक कार्बन चक्र को भी समझने के जरूरत होती है. इसलिए क्वीन्सलैंड यूनिवर्सिटी के गणितज्ञ किंगयुआन झांग की अगुआई में शोधकर्ताओं की टीम ने वैश्विक कार्बन चक्र का प्रतिमान बनाया जो उनके पास उपलब्ध पेड़ों के छल्ले के रोडियोकार्बन आकंडों के आधार तैयार किया गया था.
इस आधार पर किए गए अध्ययन से शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे कि खगोलीय विकिरण की बारिश और सौर ज्वाला का समय आपस में मेल नहीं खा रहे हैं. इसके अलावा 774 ईसवी में हुई इस तरह के घटना के समय जहां कुछ पेड़ों में एक साल में अचानक रेडियोकार्बन में इजाफा दिखा तो वहीं दूसरे में यह इजाफा दो तीन साल तक दिखाई दिया. झांग का कहना है कि इसका मतलब यही है कि एक बड़े विस्फोट या ज्वाला की जगह यह एक तरह का लंबे समय तक चला तूफान लगता है. इस तरह की घटना के क्या कारण होंगे यह तो स्पष्ट नहीं है. इसकी कई व्याख्याएं हैं लेकिन उनमें से कोई भी घटनाओं से सही तालमेल करती भी नहीं दिखाई देती है. यह वैज्ञानिकों के लिए चिंता का विषय है.