अंता विधानसभा उपचुनाव: चढ़ने लगा सियासी पारा, नेताओं की बयानबाजी और ग्रामीणों की नाराजगी बनी चर्चा का विषय

rajasathana

अंता उपचुनावों को लेकर सियासी पारा अब चढ़ने लगा है। विधानसभा क्षेत्र में आने वाले अपने वोट को लेकर सजग हैं। इधर प्रत्याशी भी मतदाताओं को लुभाने में लगे हैं।

Rajasthan Anta By Election 2025 Top Leaders Political Equation Ground Report News in Hindi
अंता उपचुनाव में चढ़ने लगा सियासी रंग – फोटो : India Views

बारां जिले की अंता विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव का रंग अब पूरी तरह चढ़ने लगा है। जैसे-जैसे मतदान की तारीख नजदीक आ रही है, वैसे-वैसे राजनीति में बयानबाजी तेज और माहौल गरमाता नजर आ रहा है। एक ओर प्रत्याशी गांव-गांव जाकर मतदाताओं को लुभाने में जुटे हैं, तो दूसरी ओर कई स्थानों पर ग्रामीण अपनी समस्याओं को लेकर नाराज भी दिखाई दे रहे हैं।

मोरपाल सुमन की सादगी बनी ताकत
वहीं भाजपा उम्मीदवार मोरपाल सुमन को उनकी सरल और सादगीपूर्ण छवि का बड़ा फायदा मिलता दिख रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में सुमन की सादगी चर्चा का विषय बनी हुई है। स्थानीय लोग उन्हें अपना आदमी मानते हैं और विश्वास जता रहे हैं कि अगर वे जीतते हैं तो जनता की समस्याओं को सीधे और सरल तरीके से सरकार तक पहुंचा पाएंगे। पार्टी कार्यकर्ताओं का मानना है कि मोरपाल सुमन की ईमानदार छवि और जमीनी जुड़ाव भाजपा के लिए लाभकारी साबित हो सकता है।

कांग्रेस प्रत्याशी प्रमोद जैन भाया को लेकर मतभेद
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रमोद जैन भाया को लेकर जनता में मिली-जुली प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। एक वर्ग मानता है कि भाया के अनुभव और प्रभाव से क्षेत्र में विकास की गति तेज हो सकती है, जबकि दूसरा वर्ग उनसे दूरी महसूस करता है। कुछ ग्रामीणों का कहना है कि भाया से मिलना आसान नहीं है, इसलिए आम जनता की समस्याएं सीधे उन तक नहीं पहुंच पातीं।

ग्रामीणों का मतदान बहिष्कार, जमीन विवाद बना बड़ा मुद्दा
इन राजनीतिक समीकरणों के बीच बैगना (छापर) गांव के लोगों ने इस बार मतदान का बहिष्कार करने का ऐलान किया है। ग्रामीणों का आरोप है कि प्रशासन ने 200 से अधिक परिवारों को जमीन खाली करने के नोटिस दिए हैं, जबकि वे पिछले 40 वर्षों से उसी जमीन पर रह रहे हैं। पट्टे पहले सरकार ने ही जारी किए थे, जिन्हें अब निरस्त कर दिया गया है। ग्रामीणों ने साफ कहा है कि जब तक कलेक्टर स्वयं गांव आकर समाधान का भरोसा नहीं देते, वे वोट नहीं डालेंगे।

अंता उपचुनाव में जहां सादगी बनाम सियासी बयानबाजी की जंग जारी है, वहीं जनता की असल चिंताएं जमीन, योजनाओं का लाभ और संवाद की कमी, चुनाव का असली मुद्दा बनकर उभर रही हैं। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि जनता विकास और सम्मान के बीच किसे प्राथमिकता देती है।

Share it :

End