Coldrif कफ सिरप बना मौत का ज़हर: “दवा देते ही उल्टियां शुरू, बच्चे ने खाना-पीना छोड़ दिया…” — मध्य प्रदेश के पीड़ितों ने सुनाई आपबीती

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मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में मासूम बच्चों की रहस्यमयी मौतों ने पूरे प्रदेश को झकझोर दिया है। शुरुआती जांच में जो मामूली खांसी-जुकाम का मामला लग रहा था, वह अब एक घातक दवा कांड बन चुका है। इन मौतों का संबंध Coldrif कफ सिरप से जोड़ा जा रहा है, जिसे पीने के बाद कई बच्चों की हालत अचानक बिगड़ गई — उल्टियां शुरू हो गईं, उन्होंने खाना-पीना छोड़ दिया और आखिरकार कई ने दम तोड़ दिया।


दर्द भरी दास्तान: “सिरप देने के कुछ घंटे बाद ही बच्चा तड़पने लगा”

छिंदवाड़ा के पेरासिया और आसपास के गाँवों में माताओं-पिताओं की आँखों में अब भी वो भय झलकता है। एक पीड़ित पिता ने बताया —

“मेरा बच्चा पूरी तरह ठीक था, बस हल्की खांसी थी। डॉक्टर ने कोल्ड्रिफ सिरप दिया। जैसे ही दवाई दी, उल्टियाँ शुरू हो गईं। धीरे-धीरे उसने खाना-पीना बंद कर दिया और कुछ ही दिनों में वो चला गया।”

दूसरी माँ ने कहा —

“हम समझ ही नहीं पाए कि क्या हुआ। डॉक्टर बोलते रहे कि वायरल है, पर हालत बिगड़ती गई। अस्पताल ने कहा कि किडनी फेल हो गई है।”

अधिकांश परिवारों ने बताया कि बच्चों में पहले तेज उल्टियाँ, भूख की कमी, और कमज़ोरी देखी गई। हालत गंभीर होते ही उन्हें छिंदवाड़ा और नागपुर के अस्पतालों में भर्ती कराया गया, लेकिन अधिकांश की जान नहीं बच सकी।


कैसे सामने आया मामला

घटना तब चर्चा में आई जब एक के बाद एक कई बच्चों की मौत समान लक्षणों के साथ हुई। डॉक्टरों ने देखा कि सभी बच्चों को “Coldrif कफ सिरप” दिया गया था।
राज्य स्वास्थ्य विभाग ने जांच कराई तो सिरप के नमूनों में डायएथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) नामक घातक रसायन पाया गया — यही रसायन पहले भी गाम्बिया और उज्बेकिस्तान में बच्चों की मौतों का कारण बन चुका है।

रिपोर्ट में DEG की मात्रा लगभग 48% बताई गई, जो किसी भी औषधि में बिल्कुल अस्वीकार्य है।


प्रशासन की त्वरित कार्रवाई

  1. Coldrif सिरप पर पूर्ण प्रतिबंध:
    राज्य सरकार ने तुरंत Coldrif कफ सिरप की बिक्री और वितरण पर रोक लगा दी।

  2. निर्माता पर कार्रवाई:
    यह सिरप तमिलनाडु की Sresan Pharmaceuticals कंपनी द्वारा निर्मित था। राज्य सरकार ने कंपनी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई है और उसकी सभी दवाओं की बिक्री रोक दी गई है।

  3. जांच और गिरफ्तारी:
    छिंदवाड़ा के डॉक्टर प्रवीण सोनी को हिरासत में लिया गया है, जिन पर लापरवाही से मौत के मामले दर्ज हुए हैं। एक विशेष जांच दल (SIT) बनाई गई है जो दवा वितरण श्रृंखला से लेकर प्रयोगशाला रिपोर्ट तक हर बिंदु की जांच कर रही है।

  4. सिरप की जब्ती:
    अब तक प्रशासन ने 433 बोतलें जब्त की हैं, जबकि 222 बोतलों का वितरण हो चुका था। उनके खरीदारों का पता लगाया जा रहा है।

  5. मुआवजा और सहायता:
    मुख्यमंत्री मोहन यादव ने मृतक बच्चों के परिवारों को ₹4 लाख का मुआवजा देने और जिन बच्चों का इलाज चल रहा है, उनका पूरा खर्च राज्य सरकार द्वारा वहन करने की घोषणा की है।


केंद्र सरकार की पहल

घटना के बाद केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को आदेश दिया है कि वे सभी कफ सिरप ब्रांड्स के नमूने तत्काल जांच के लिए भेजें। स्वास्थ्य मंत्रालय ने यह भी कहा कि भविष्य में किसी भी दवा के निर्माण में गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस (GMP) और Revised Schedule-M का पालन अनिवार्य होगा।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने चेतावनी दी है —

“किसी को भी बख्शा नहीं जाएगा। बच्चों की मौत के लिए जो जिम्मेदार हैं, उन पर सख्त कार्रवाई होगी।”


पीड़ित परिवारों का आक्रोश और सवाल

पीड़ित परिवारों का कहना है कि प्रशासन ने शुरुआत में मामले को गंभीरता से नहीं लिया। कई परिवारों ने यह भी आरोप लगाया कि पोस्टमॉर्टम तक नहीं कराया गया, और सरकारी अधिकारी “छुट्टी पर” थे जब उनके बच्चों की मौत हुई।
अब जब जांच शुरू हुई है, तो वे चाहते हैं कि दोषियों को कठोर सजा मिले और ऐसे मामलों की पुनरावृत्ति न हो।


कफ सिरप कांड: एक बड़ी चेतावनी

यह घटना भारत के लिए एक गहरी चेतावनी है —
दवा निर्माण में लापरवाही, गुणवत्ता नियंत्रण की कमी और निगरानी तंत्र की कमजोरी किस तरह निर्दोष जीवन छीन सकती है।

विशेषज्ञों का कहना है कि डायएथिलीन ग्लाइकॉल जैसे रसायन को जानबूझकर सस्ता विकल्प समझकर उपयोग किया गया हो सकता है, लेकिन यह किसी भी औषधीय उपयोग के लिए जानलेवा ज़हर है।

छिंदवाड़ा की इस त्रासदी ने कई परिवारों को हमेशा के लिए तोड़ दिया है।
अब सवाल यह है — क्या इस घटना के बाद भारत की औषधि प्रणाली और निगरानी व्यवस्था में कोई वास्तविक सुधार आएगा, या फिर यह भी एक “एक दिन की खबर” बनकर रह जाएगी?

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