
राजधानी में बढ़ते वायु-प्रदूषण से निपटने के लिए दिल्ली सरकार-प्रशासन ने क्लाउड सीडिंग यानी कृत्रिम बारिश की योजना को तैनात कर दिया है। इस तकनीक में विशेष विमान बादलों तक पहुंचकर छोटे-छोटे रासायनिक पैकेट छोड़ते हैं; इन्हें उड़ान के दौरान बटन दबाकर सक्रिय किया जाता है और पैकेटों के फटने से बादल में नमी के संकेंद्रण को बढ़ाकर वर्षा कराई जाती है। अधिकारियों के मुताबिक प्रत्येक विमान में 8–10 केमिकल पैकेट मौजूद रहेंगे जिन्हें नियंत्रित विस्फोट के जरिये छोड़ा जाएगा।
क्या है तरीका और कैसे काम करेगा?
प्रशासन ने बताया है कि क्लाउड सीडिंग अभियान के लिए चिन्हित उड़ान मार्गों पर विमान उड़ाए जाएंगे। विमान के भीतर पैक किए गए छोटे-छोटे केमिकल कैप्सूल उड़ान के उपयुक्त क्षण पर सक्रिय किए जाएंगे — इसे सामान्य भाषा में “बटन दबाकर ब्लास्ट” कहा जा रहा है। इन पैकेटों के फटने पर निकलने वाले कण बादल के भीतर नमी के चारों ओर जमा होकर बारिश के कणों (raindrops) के बनने की प्रक्रिया को तेज करते हैं, जिससे उपयुक्त परिस्थितियों में कृत्रिम रूप से वर्षा उत्पन्न की जा सकती है।
इस्तेमाल होने वाले रासायनिक पदार्थ और सुरक्षा
आधिकारिक बयानों में कहा गया है कि जिन रसायनों का प्रयोग किया जाएगा, वे नियंत्रित मात्रा में होंगे और मानव तथा पर्यावरण के लिए खतरनाक नहीं माने जाते। हालांकि विशेषज्ञ कहते हैं कि क्लाउड सीडिंग में सामान्यतः उपयोग होने वाले एजेंटों (जैसे अयोडाइड यौगिक या नमक के कण) के दुष्प्रभावों और प्रभावशीलता पर समय-समय पर समीक्षा करनी चाहिए। प्रशासन ने आश्वासन दिया है कि अभियान के दौरान पर्यावरण-प्रभाव आकलन और स्वीकृत प्रोटोकॉल का पालन होगा।
कब और कहां होगा अभियान?
दिल्ली प्रशासन ने बताया कि क्लाउड सीडिंग तभी की जाएगी जब मौसम विज्ञान विभाग के मॉडल और रडार संकेत सहयोगी हों — यानी आसमान में पहले से मौजूद बादलीय संरचना और नमी की स्थिति अनुकूल हो। अभियान का लक्ष्य-क्षेत्र दिल्ली के साथ-साथ आसपास के उप-क्षेत्र होंगे ताकि वायु-गति और पवन के मद्देनजर बारिश का प्रभाव अधिकतम रहे। अभियान की तारीखें मौसम की जिंदंगी के अनुसार तय की जाएंगी।
क्या इससे प्रदूषण कम होगा — विशेषज्ञ क्या कहते हैं?
सरकारी सूत्रों का दावा है कि सफल कृत्रिम वर्षा से हवा में तैर रहे पराग-कण (PM2.5, PM10) और धूल बारिश के साथ नीचे गिरेंगे, परिणामस्वरूप वायु-गुणवत्ता में गिरावट (सुधार) दिखेगी। लेकिन कुछ वायुमंडलीय वैज्ञानिकों ने सतर्क टिप्पणी की है:
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क्लाउड सीडिंग हर बार सफल नहीं होती; यह मौसमी और स्थानिक परिस्थितियों पर बेहद निर्भर है।
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इससे दीर्घकालिक समाधान — जैसे प्रदूषण स्रोतों में कटौती — नहीं मिलेंगे; यह अधिकतर आपातकालीन राहत जैसा उपाय है।
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रासायनिक एजेंट के पारिस्थितिक और जमीनी प्रभावों का विस्तृत डेटा और निगरानी आवश्यक है।
प्रशासन का रुख और सुरक्षा-नियमन
दिल्ली अधिकारियों ने कहा है कि अभियान केंद्रीय मौसम विज्ञान विभाग और संबंधित पर्यावरण निकायों की सलाह के साथ ही चलाया जाएगा। इसके अलावा पायलटों और क्रू को विशेष प्रशिक्षण दिया गया है और विमानन सुरक्षा मानकों का पालन अनिवार्य रहेगा। स्वास्थ्य विभाग ने भी निर्देश जारी किए हैं कि नागरिकों को किसी भी असामान्य जलवायु-घटनाओं के प्रति सतर्क रहना चाहिए और प्रशासन की सूचनाओं का पालन करें।
जनता के साथ संवाद और पारदर्शिता की ज़रूरत
विभिन्न नागरिक संगठनों और पर्यावरणविद् इस पहल पर पारदर्शिता और सरकारी संचार की आवश्यकता बता रहे हैं — यानी कब, कहां और किस सामग्री का इस्तेमाल हो रहा है, इसकी सार्वजनिक सूचना होना जरूरी है ताकि अफवाह और गलतफहमियाँ न फैलें।
नतीजा — अस्थायी राहत या दीर्घकालिक हल?
क्लाउड सीडिंग से दिल्ली को तत्काल कुछ राहत मिल सकती है — खासकर जब स्मॉग अधिक गंभीर हो और मौसम नमीयुक्त हो। परंतु विशेषज्ञों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि सच्ची और स्थायी वायु-गुणवत्ता सुधार के लिए इंडस्ट्रियल उत्सर्जन, धूम्रपान नियन्त्रण, वाहन उत्सर्जन मानक, सीजनल कृषि जलन पर रोक जैसे उपायों पर भी बराबरी से काम करना होगा।
निष्कर्ष: दिल्ली में कृत्रिम बारिश का अभियान प्रदूषण नियंत्रण की दिशा में एक त्वरित, तकनीकी प्रयास है — जिसमें विमान में रखे 8–10 केमिकल पैकेट और नियंत्रित ‘ब्लास्ट’ शामिल हैं — लेकिन यह अकेला उपाय नहीं है। प्रशासन ने इसे आपातकालीन और सहायक कदम बताया है; विशेषज्ञों ने इंतज़ार और सावधानी के साथ निगरानी की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है।