पाकिस्तान में बढ़ी जनरल आसिम मुनीर की ताकत, संसद में प्रस्तावित संशोधन से सेना प्रमुख को मिला पीएम से भी ज्यादा अधिकार

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पाकिस्तान की राजनीति में सेना का प्रभाव पहले से ही गहरा रहा है, लेकिन अब हालात ऐसे बन गए हैं कि सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर प्रधानमंत्री से भी ज्यादा शक्तिशाली हो सकते हैं। संसद में एक नया संवैधानिक संशोधन प्रस्तावित किया गया है, जो सेना प्रमुख को औपचारिक रूप से सर्वोच्च शक्तियों से लैस कर देगा। यह कदम पाकिस्तान की लोकतांत्रिक संरचना पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है।

संविधान में प्रस्तावित बदलाव

इस संशोधन के तहत सेना प्रमुख को सरकार के किसी भी निर्णय में हस्तक्षेप करने, सुरक्षा मामलों पर अंतिम निर्णय लेने और यहां तक कि नागरिक प्रशासन में भी भूमिका निभाने का अधिकार मिल जाएगा। इससे पाकिस्तान में नागरिक शासन की जगह ‘सैन्य निगरानी वाली सरकार’ जैसी स्थिति बन सकती है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस संशोधन का उद्देश्य “राष्ट्रीय स्थिरता” और “राष्ट्रीय सुरक्षा” को मजबूत करना बताया जा रहा है। लेकिन विपक्षी दलों और राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह केवल एक बहाना है ताकि सेना प्रमुख को औपचारिक रूप से ‘सुपर पावर’ बनाया जा सके।

सेना प्रमुख की ताकत क्यों बढ़ाई जा रही है?

पाकिस्तान की राजनीति लंबे समय से अस्थिर रही है। कई बार सेना ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सत्ता संभाली है। आसिम मुनीर के नेतृत्व में पाकिस्तान की सेना पहले ही राजनीतिक मामलों में गहरी दखल दे रही है। आर्थिक संकट, आंतरिक अशांति और अंतरराष्ट्रीय दबावों के बीच सरकार ने शायद यह कदम सेना की मदद से स्थिरता बनाए रखने के लिए उठाया है।

हालांकि, जानकारों का कहना है कि यह कदम देश के लोकतांत्रिक ढांचे को और कमजोर करेगा। संसद और प्रधानमंत्री की भूमिका सीमित हो जाएगी और हर बड़े फैसले पर सेना का ‘वीटो’ लागू रहेगा।

आसिम मुनीर की छवि और चुनौतियाँ

जनरल आसिम मुनीर को पाकिस्तान की राजनीति और सेना में सख्त और अनुशासित अधिकारी के रूप में जाना जाता है। वे इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) और मिलिट्री इंटेलिजेंस (MI) दोनों का नेतृत्व कर चुके हैं। उनका रिकॉर्ड दर्शाता है कि वे भ्रष्टाचार और अव्यवस्था के खिलाफ कठोर रुख रखते हैं।

लेकिन मौजूदा हालात में उनके सामने कई बड़ी चुनौतियाँ हैं—

  • देश की गिरती अर्थव्यवस्था,

  • राजनीतिक अस्थिरता,

  • और इमरान खान समर्थकों का विरोध आंदोलन

हाल ही में कई शहरों में ‘सैन्य तानाशाही’ के खिलाफ प्रदर्शन हुए हैं। विपक्ष का कहना है कि इस संशोधन के जरिए लोकतंत्र का गला घोंटा जा रहा है।

विपक्ष और जनता की प्रतिक्रिया

विपक्षी दलों—पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP)—ने संसद में जोरदार विरोध दर्ज कराया है। उनका कहना है कि यह संशोधन “लोकतंत्र की हत्या” के समान है। कई सांसदों ने इसे “संविधान की आत्मा के खिलाफ” बताया है।

सामान्य जनता के बीच भी इस प्रस्ताव को लेकर गुस्सा बढ़ रहा है। सोशल मीडिया पर #SaveDemocracy और #NoToDictatorship जैसे ट्रेंड चल रहे हैं।

आसिम मुनीर की चिंता—क्यों सता रहा डर?

हालांकि सेना प्रमुख के पास अब लगभग असीमित अधिकार होंगे, फिर भी जनरल मुनीर के सामने सबसे बड़ी चुनौती “जनता की नाराजगी” है। पाकिस्तान के इतिहास में कई बार ऐसा हुआ है कि सेना की ताकत के बावजूद जनआंदोलन ने तानाशाहों को हटने पर मजबूर किया।

साल 2008 में परवेज मुशर्रफ की विदाई इसका उदाहरण है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर जनता का विरोध बढ़ा, तो आसिम मुनीर को भी अपने पद पर बने रहना मुश्किल हो सकता है।

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया

अमेरिका, यूके और यूरोपीय संघ जैसे लोकतांत्रिक देशों ने इस प्रस्ताव पर चिंता जताई है। उन्होंने कहा है कि पाकिस्तान को अपने लोकतांत्रिक संस्थानों को कमजोर नहीं करना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय संगठनों का भी कहना है कि “सैन्य शक्ति का राजनीतिक ढांचे पर इस स्तर का नियंत्रण” पाकिस्तान को एक अस्थिर दिशा में ले जा सकता है।

निष्कर्ष

पाकिस्तान में प्रस्तावित यह संशोधन देश की सत्ता-संरचना में एक ऐतिहासिक मोड़ साबित हो सकता है। जहां एक ओर सेना इसे “राष्ट्रीय सुरक्षा” की दिशा में कदम बता रही है, वहीं आलोचक इसे “लोकतंत्र के अंत की शुरुआत” मान रहे हैं।

अगर यह प्रस्ताव पास हो जाता है, तो पाकिस्तान में सत्ता का केंद्र प्रधानमंत्री नहीं, बल्कि सेना प्रमुख होंगे—जो एक लोकतांत्रिक देश के लिए चिंताजनक संकेत है।

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