जिस अलास्का में 15 अगस्त को ट्रंप-पुतिन की बैठक होनी है, वह कहां स्थित है? कभी रूस और अब अमेरिका के हिस्से के तौर पर पहचाने जाने वाले इस क्षेत्र का इतिहास क्या है? कैसे और क्यों रूस का हिस्सा रहा यह क्षेत्र अमेरिका के हाथ में आ गया? इस भूभाग का रणनीतिक और सामरिक महत्व कितना रहा है? आइये जानते हैं…

क्या है अलास्का का इतिहास?
अलास्का पर रूस के बाद स्पेन की भी निगाहें पड़ीं और साल 1774 से 1800 के बीच स्पैनिश शासकों ने कई अभियान भेजे। तब स्पेन का मकसद अलास्का से सटे प्रशांत के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र पर दावा करने का था। लेकिन इसके बावजूद अलास्का की मुख्य भूमि लगातार सोवियत कब्जे में बनी रही।
अलास्का में रूस का फलता-फूलता कारोबार और शासन 19वीं सदी के मध्य में आते-आते लड़खड़ाने लगा। इस दौर में रूसी साम्राज्य को अलास्का एक फायदे की जगह घाटे का सौदा लगने लगा। दरअसल, यही वह समय था, जब रूसी साम्राज्य को ब्रिटेन, फ्रांस और ओटोमन साम्राज्य के खिलाफ क्रीमिया युद्ध में हार का सामना करना पड़ा था। ऐसे में रूस को अलास्का का खर्च अवहनीय लगने लगा। इतना ही नहीं इस दौर में ब्रिटेन ने प्रशांत महासागर में एक के बाद एक कई द्वीपों और देशों पर कब्जा कर लिया था। ऐसे में क्षेत्र में रूसी नौसेना की बढ़ती मौजूदगी को देखते हुए रूस ने इस क्षेत्र से अपनी पकड़ धीरे-धीरे ढीली करनी शुरू कर दी। आखिरकार रूसी साम्राज्य ने 1867 में अलास्का को अमेरिका को बेचने का फैसला कर लिया।
1867 के जुलाई महीने में अपने एक मित्र को लिखी गई चिट्ठी में वॉशिंगटन में रूस के राजदूत रहे एडुअर्ड डी स्टोएकेल ने कहा था, “मेरी संधि (अलास्का को बेचने का प्रस्ताव) की काफी खिलाफत हो रही है, लेकिन तथ्य यह है कि घर पर (रूस में) किसी को भी अंदाजा नहीं है कि हमारे उपनिवेशों की हालत क्या है। यह सीधे तौर पर अपने उपनिवेशों को बेचने का समय है या उन्हें अपने से छिनते देखे जाने का।”
हालांकि, राजनयिक स्तर की इस जीत को भी प्रशांत महासागर में मौजूद देशों के बीच रूस की हार माना गया। खुद रूस में इसे पहली बार एक औपनिवेशिक ताकत के लिए मुश्किल स्थिति के तौर पर देखा गया। खासकर जिस 72 लाख डॉलर में तब अलास्का को अमेरिका ने खरीदा था, इस कम रकम को रूस के लिए और बेइज्जती के तौर पर दर्ज किया गया। तब रूस के सेंट पीटर्सबर्ग से छपने वाले सुधारवादी अखबार ‘गोलोस’ (Golos) ने इस लेनदेन को सभी रूसियों के लिए नाराजगी का सबब बता दिया था। अखबार ने लिखा था, “क्या राष्ट्र के गौरव की भावना सच में इतनी कमजोर है कि इसे मात्र 60 या 70 लाख डॉलर के लिए बलिदान किया जा सकता है?”
इतना ही नहीं अमेरिका में कुछ आलोचक ऐसे भी थे, जिन्हें अलास्का का समझौता जरूरत से ज्यादा ही कम कीमत का लगा। इन लोगों ने शक जताते हुए अंदेशा जताया था कि रूस ने आखिर इस क्षेत्र को इतने सस्ते दामों पर इसलिए बेच दिया, क्योंकि इसमें कुछ था ही नहीं। अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क वर्ल्ड ने अप्रैल 1867 में लिखा था, “रूस ने हमें एक चुसा हुआ संतरा बेच दिया। अलास्का की जमीन की जो भी कीमत रही हो, लेकिन यह द्वीप अब रूस का नहीं, हमारा है।”
अमेरिका में अलास्का को लेकर सरकार की आलोचना करने वालों की जुबान पर ताला तब लग गया जब 19वीं सदी में यहां सोना होने की खबरें सामने आईं। इतना ही नहीं कुछ और प्राकृतिक संसाधन और खनिजों की मौजूदगी ने अलास्का की अहमियत एकाएक बढ़ा दी। कुछ दशकों बाद यहां तेल के कुओं की खोज ने पूरा परिदृश्य ही बदलकर रख दिया। इस तरह एक समय अमेरिका की गलती कहे जाने वाले अलास्का को खरीदने के फैसले को धीरे-धीरे अमेरिका का सबसे बड़ा फायदे का सौदा कहा जाने लगा।
मजेदार बात यह है कि 1867 में जब अलास्का को लेकर रूस और अमेरिका का समझौता हुआ था, तब दोनों देश कम समय के लिए ही, लेकिन काफी करीब दिखे थे। लेकिन यह स्थिति ज्यादा दिन नहीं रही। जैसे-जैसे अमेरिका को अलास्का में नए संसाधन मिलने लगे, रूस में इस द्वीप की बिक्री को लेकर माहौल गर्म होने लगा। अलग-अलग मौकों पर सोवियत शासन में अलास्का को वापस लेने की मांग भी उठती रही है। हालांकि, अमेरिका ने इस क्षेत्र में अपना सैन्य बेस बनाने के साथ रक्षा ढांचे को भी मजबूत किया, ताकि किसी भी तरह से अलास्का को बलपूर्वक लेने से रोका जा सके।
अलास्का में जहां पर डोनाल्ड ट्रंप और व्लादिमीर पुतिन की बैठक होनी है, वह अमेरिका का जॉइंट बेस एल्मेनडॉर्फ रिचर्डसन है। यह क्षेत्र अलास्का के सबसे ज्यादा आबादी वाले शहर एंकरेज के उत्तरी कोने में है।

दूसरी तरफ अलास्का अमेरिका का क्षेत्र है और अमेरिका अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय (ICC) का सदस्य नहीं है। इससे अलास्का रूसी राष्ट्रपति पुतिन के लिए सुरक्षित स्थान बन जाता है, क्योंकि उनके खिलाफ आईसीसी के वारंट हैं।