- इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च की एक रिपोर्ट बताती है कि पिछले 30 वर्षों में भारत में मोटापे की दर दोगुना से अधिक बढ़ गई है, मोटापे के कारण इससे संबंधित बीमारियों का जोखिम भी अब काफी अधिक हो गया है।

Obesity Increase In India: पिछले तीन दशकों (30 साल) के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि इस दौरान देश में कई प्रकार की क्रॉनिक बीमारियां तेजी से बढ़ी हैं। डायबिटीज हो या हृदय रोग, लिवर की बीमारी हो या कैंसर सभी में तेजी से वृद्धि हुई है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, इन सभी रोगों की मुख्य वजह है बढ़ता मोटापा। ये देश के लिए मौजूदा समय में सबसे बड़ी स्वास्थ्य आपदा है जिसको लेकर सभी लोगों को निरंतर सावधानी बरतते रहने की आवश्यकता है।
भारत में मोटापा अब सिर्फ एक व्यक्तिगत समस्या नहीं रह गया है, बल्कि यह पूरे देश की सेहत के लिए बड़ी चुनौती बनकर सामने आ रहा है। इसी संकट पर ध्यान आकृष्ट करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त को लालकिले की प्राचीर से भी सभी लोगों से मोटापे को कम करने वाले उपायों पर ध्यान देने की अपील की थी।

भारत में बढ़ते मोटापे की समस्या
जिस दौर में देश विकास और प्रगति की राह पर तेजी से आगे बढ़ रहा है, उसी दौरान हमारी जीवनशैली, खान-पान और दिनचर्या में ऐसे बदलाव आए हैं, जिन्होंने मोटापे के मामलों को खतरनाक स्तर तक पहुंचा दिया है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, मोटापा लुक खराब करने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह डायबिटीज, ब्लड प्रेशर, हार्ट डिजीज और यहां तक कि कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों की जड़ है।
पिछले तीन दशकों की बात करें तो आंकड़े चौंकाने वाले हैं। जहां पहले मोटापा शहरी, अमीर वर्ग तक सीमित माना जाता था, वहीं अब यह छोटे कस्बों और ग्रामीण इलाकों तक भी फैल गया है।

प्रति व्यक्ति खाने के तेल की खपत बढ़ी
लालकिले से प्रधानमंत्री मोदी ने मोटापा कम करने के लिए सभी लोगों को खाने के तेल में 10% कटौती करने की सलाह दी थी। हालांकि आंकड़े बताते हैं कि दो दशकों में खाने के तेल की खपत भी तीन गुना तक बढ़ गई है।
साल 2001 में प्रति वर्ष प्रति व्यक्ति खाने के तेल की खपत 8.2 किलोग्राम से बढ़कर ये अब 23.5 किलोग्राम हो गई है। यह भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा सुझाई गई ऊपरी सीमा से लगभग दोगुना है।
इसके साथ ऑफिस की दिनचर्या, घटती आउटडोर गतिविधियां, शारीरिक गतिविधि में कमी या इसके लिए समय न निकाल पाने जैसी स्थितियों ने मोटापे के खतरे के काफी बढ़ा दिया है।

इंडियन जर्नल ऑफ नॉन कम्युनिकेबल डिजीज की रिपोर्ट के मुताबिक साल 1990 में जहां देश की वयस्क आबादी में मोटापे की दर 9-10% थी, वहीं 2025 तक बढ़कर 20 से 23% तक पहुंच गई है। विशेषज्ञों के मुताबिक यह वृद्धि शहरीकरण, असंतुलित आहार, घटती शारीरिक गतिविधि और बढ़ते तनाव जैसे कारणों के चलते देखी जा रही है। 2025 तक शहरी क्षेत्रों में हर चार में से एक वयस्क मोटापे से प्रभावित है।
इन राज्यों में मोटापे की दर सबसे अधिक
भारत में मोटापे के लिहाज से शीर्ष पांच राज्यों में पंजाब, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और गुजरात शामिल हैं। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के आकड़ों के अनुसार पंजाब में वयस्क आबादी का 33% से अधिक हिस्सा हिस्सा मोटापे या अधिक वजन की श्रेणी में आता है, जो देश में सबसे अधिक है। केरल में यह दर 32 तमिलनाडु व आंध्र प्रदेश में 30 के करीब, जबकि गुजरात में यह लगभग 28% है।

आंकड़ों से पता चलता है कि छत्तीसगढ़, ओडिशा और उत्तराखंड में मोटापे की दर कम है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के अनुसार बिहार, झारखंड, उत्तीसगढ़, ओडिशा व उत्तराखंड उन राज्यों में हैं जहां मोटापे या अधिक वजन की दर सबसे कम है। इनमें वयस्क आबादी का 15 से 13% हिस्सा हो अधिक वजन या मोटापे की श्रेणी में आता है। फिटनेस के लिए विशेषज्ञों की टीम ने ग्रामीण इलाकों में खेती-बाड़ी, पैदल या साइकिल चलाने जैसी आदतों को लाभकारी पाया है।
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