
बिहार की सियासत में प्रशांत किशोर की सक्रियता ने एक नई बहस छेड़ दी है। अब यह सवाल उठ रहा है कि क्या PK भारतीय जनता पार्टी के पारंपरिक भूमिहार-ब्राह्मण वोट बैंक को प्रभावित करने की स्थिति में हैं।
हाल के दिनों में तीन घटनाओं ने इस चर्चा को हवा दी है। पहला, अमित शाह का बेगूसराय दौरा, जहां भूमिहार वोटरों की बड़ी संख्या है। इसे BJP का अपने पारंपरिक वोटरों को साधने का प्रयास माना जा रहा है। दूसरा, प्रशांत किशोर का यह आह्वान कि लोग जाति या पार्टी की पहचान के आधार पर नहीं, बल्कि बच्चों के भविष्य, शिक्षा और रोजगार जैसे मुद्दों को देखते हुए वोट करें। तीसरा, किशोर का यह बयान कि हिंदू समाज का पूरा हिस्सा BJP के साथ नहीं है, और गांधी-अंबेडकर की राह पर चलने वाले हिंदुओं को मुसलमानों के साथ मिलकर नए राजनीतिक विकल्प की तलाश करनी चाहिए।
इन संकेतों से साफ है कि PK जातिगत राजनीति से हटकर मुद्दा-आधारित राजनीति की पिच पर खेलना चाहते हैं। इससे भूमिहार-ब्राह्मण समुदाय के उन वोटरों को आकर्षित किया जा सकता है जो केवल पहचान आधारित राजनीति से आगे बढ़ना चाहते हैं। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि इस वोट बैंक में वास्तविक सेंध लगाना आसान नहीं होगा, क्योंकि स्थानीय उम्मीदवार, बूथ स्तर पर संगठन और BJP की जवाबी रणनीति निर्णायक भूमिका निभाएगी।
फिलहाल इतना तय है कि प्रशांत किशोर ने भाजपा के मजबूत वोट बैंक पर चर्चा छेड़कर बिहार की राजनीति में हलचल जरूर मचा दी है।