
Bihar Elections 2025 | Rural vs Urban Voting Trend:
बिहार विधानसभा चुनाव के बीच एक दिलचस्प ट्रेंड सामने आया है — गांवों के वोटर इस बार राजनीति की कमान संभाले हुए हैं, जबकि शहरों में मतदान को लेकर उत्साह में गिरावट देखी गई है। चुनाव आयोग के ताज़ा आंकड़ों से साफ है कि ग्रामीण इलाकों में वोटिंग प्रतिशत शहरी क्षेत्रों की तुलना में कहीं ज़्यादा रहा है, जो बिहार की पारंपरिक राजनीति की तस्वीर को एक बार फिर साफ करता है।
📊 गांव बनाम शहर: आंकड़ों में दिखा फर्क
आंकड़ों के अनुसार, बिहार के दरभंगा, सीवान, सिवान, मधुबनी और गोपालगंज जैसे ग्रामीण बहुल जिलों में मतदान दर 63% से 70% के बीच रही। वहीं दूसरी ओर, पटना, गया और मुजफ्फरपुर जैसे शहरी क्षेत्रों में वोटिंग प्रतिशत घटकर 52% से 56% के बीच रहा।
विशेषज्ञों का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में चुनाव को लेकर लोगों में ज्यादा जागरूकता और राजनीतिक सक्रियता देखी जाती है, क्योंकि वहां विकास, रोजगार और स्थानीय मुद्दे सीधे मतदाताओं के जीवन को प्रभावित करते हैं।
🗣️ चुनाव विश्लेषकों की राय
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बिहार में गांव अब भी राजनीति की धुरी बने हुए हैं।
पटना यूनिवर्सिटी के राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर अजय ठाकुर के अनुसार —
“बिहार में अभी भी राजनीति गांवों से शुरू होती है। शहरों में युवा और मध्यम वर्ग का मतदान रुझान कमजोर पड़ रहा है, लेकिन ग्रामीण वोटर अब भी हर बार अपनी भूमिका बखूबी निभा रहे हैं।”
उन्होंने कहा कि गांवों में जातीय समीकरण, स्थानीय नेतृत्व और प्रत्याशी से सीधा जुड़ाव वोटिंग के प्रमुख कारणों में से एक हैं।
🏙️ शहरों में क्यों घटी वोटिंग?
शहरी मतदाताओं में इस बार राजनीतिक उदासीनता और मतदान के दिन छुट्टी मनाने की प्रवृत्ति देखी गई।
पटना, भागलपुर और गया जैसे शहरों में कई बूथों पर कम भीड़ और धीमी वोटिंग प्रक्रिया नजर आई।
कई युवाओं ने सोशल मीडिया पर राजनीति को लेकर निराशा और असंतोष भी जताया।
🧭 क्या बदलेगी बिहार की राजनीति की दिशा?
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर ग्रामीण वोटिंग का रुझान ऐसे ही जारी रहा, तो चुनावी नतीजे गांव-केंद्रित मुद्दों और स्थानीय समीकरणों से ही तय होंगे।
इसका मतलब यह भी है कि शहरों में कम वोटिंग से विपक्षी दलों या सत्ताधारी गठबंधन को फायदा या नुकसान दोनों हो सकता है, यह प्रत्याशी और सीट पर निर्भर करेगा।
🗳️ नतीजों पर असर तय करेगा ग्रामीण रुझान
बिहार की 243 विधानसभा सीटों में से करीब 200 से अधिक सीटें ग्रामीण इलाकों में आती हैं।
ऐसे में यह स्पष्ट है कि ग्रामीण मतदाता इस चुनाव में किंगमेकर की भूमिका निभाने वाले हैं।
चुनाव आयोग का मानना है कि इस बार कुल वोटिंग प्रतिशत 60% से ऊपर जा सकता है, जो बिहार के पिछले चुनावों से बेहतर है।