बिहार NDA में सीट बंटवारे का फॉर्मूला तय: क्या चिराग पासवान की नाराजगी की कीमत चुकाएंगे मांझी और कुशवाहा?

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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) में सीट बंटवारे का फॉर्मूला लगभग तय हो गया है। हालांकि, इस नए समीकरण से गठबंधन के भीतर असंतोष भी उभरने लगा है। खासकर लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) के नेता जीतन राम मांझी और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP) प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा के बीच मतभेद गहराने के संकेत मिल रहे हैं। सवाल यह है कि क्या चिराग पासवान की नाराजगी की राजनीतिक कीमत मांझी और कुशवाहा को चुकानी पड़ेगी?


पटना में हुई एनडीए की अहम बैठक

सोमवार को पटना में बीजेपी मुख्यालय में एनडीए के प्रमुख नेताओं की बैठक हुई। इसमें बीजेपी, जेडीयू, एलजेपी (रामविलास), हम और आरएलएसपी के शीर्ष नेताओं ने भाग लिया। बैठक में सीट बंटवारे को लेकर विस्तृत चर्चा हुई और प्रारंभिक फॉर्मूला पर सहमति भी बनी।

सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी और जेडीयू ने 2020 विधानसभा चुनाव की तर्ज पर मुख्य साझेदार के रूप में अधिकांश सीटों पर दावा बरकरार रखा है। वहीं, छोटे सहयोगी दलों के लिए सीमित सीटें छोड़ी गई हैं।


संभावित सीट बंटवारे का फॉर्मूला

बैठक से लीक हुई प्रारंभिक जानकारी के अनुसार—

  • भाजपा को लगभग 110 सीटें मिल सकती हैं।

  • जेडीयू के खाते में 100 सीटें आने की संभावना है।

  • एलजेपी (रामविलास) को 15 से 20 सीटें दी जा सकती हैं।

  • हम (जीतन राम मांझी) को 8 से 10 सीटों का ऑफर बताया जा रहा है।

  • आरएलएसपी (उपेंद्र कुशवाहा) को 5 से 7 सीटें मिलने की संभावना है।

हालांकि, इस फॉर्मूले को लेकर छोटे दलों में असंतोष पनपने लगा है।


चिराग पासवान की नाराजगी

चिराग पासवान इस सीट बंटवारे से खासे असंतुष्ट बताए जा रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि वे बिहार में अपने संगठन की ताकत और युवाओं में लोकप्रियता के आधार पर कम से कम 30 सीटों की मांग कर रहे हैं।
एलजेपी (रामविलास) का कहना है कि 2020 के चुनाव में उन्होंने अकेले दम पर अच्छी प्रदर्शन किया था, इसलिए उन्हें अब “प्रमुख सहयोगी” का दर्जा मिलना चाहिए।

पार्टी के कुछ नेताओं का कहना है कि अगर चिराग की मांग पूरी नहीं हुई, तो वे कुछ सीटों पर अलग उम्मीदवार उतार सकते हैं या “फ्रेंडली फाइट” का रास्ता अपना सकते हैं।


मांझी और कुशवाहा की चिंता

उधर, जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा भी सीटों की संख्या को लेकर असंतुष्ट बताए जा रहे हैं।

  • मांझी चाहते हैं कि हम पार्टी को कम से कम 15 सीटें मिलें, ताकि दलित और महादलित वर्ग में उनका प्रभाव बना रहे।

  • वहीं, कुशवाहा का तर्क है कि ओबीसी (विशेषकर कुशवाहा समाज) में उनका आधार मजबूत है, इसलिए उन्हें कम से कम 10 सीटें मिलनी चाहिए।

दोनों नेताओं को यह भी आशंका है कि एनडीए में “दो ध्रुवों” — भाजपा और जेडीयू — के मजबूत होने से उनके राजनीतिक अस्तित्व पर असर पड़ सकता है।


एनडीए के भीतर संतुलन साधने की चुनौती

बीजेपी के रणनीतिकार इस बार चुनाव में “वोट प्रतिशत” के हिसाब से सीटें तय करने की कोशिश कर रहे हैं। इसका मतलब यह है कि जिन दलों का वोट शेयर ज्यादा है, उन्हें ज्यादा सीटें मिलेंगी। इस फार्मूले से छोटे दलों की सीटें स्वतः घट जाती हैं।

जानकारों का कहना है कि बीजेपी और जेडीयू नहीं चाहते कि 2020 जैसी स्थिति बने, जब सहयोगी दलों के असंतोष ने कई सीटों पर एनडीए के उम्मीदवारों को नुकसान पहुंचाया था। इसलिए इस बार सीटों का फॉर्मूला सख्त लेकिन व्यावहारिक रखा गया है।


राजनीतिक समीकरण पर असर

एनडीए के भीतर चल रही यह खींचतान महागठबंधन (आरजेडी-कांग्रेस-लेफ्ट) के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर छोटे दल नाराज होकर अलग राह पकड़ते हैं या बागी उम्मीदवार खड़े करते हैं, तो विपक्षी दलों को इसका सीधा लाभ मिल सकता है।

फिलहाल बीजेपी और जेडीयू नेतृत्व नाराज सहयोगियों को मनाने में जुटा है। अगले कुछ दिनों में सीट बंटवारे पर अंतिम घोषणा की उम्मीद है।


बिहार एनडीए में सीट बंटवारे का फॉर्मूला तय तो हो गया है, लेकिन इससे गठबंधन में असंतोष की दरार भी गहरी होती दिख रही है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी नेतृत्व चिराग पासवान, मांझी और कुशवाहा जैसे नाराज सहयोगियों को कैसे मनाता है। अगर यह नाराजगी बढ़ी, तो एनडीए के लिए चुनावी समीकरण संभालना आसान नहीं रहेगा।

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