
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के दोनों चरणों की वोटिंग खत्म हो चुकी है और इस बार रिकॉर्ड तोड़ मतदान ने सबका ध्यान अपनी ओर खींच लिया है।
राज्य के कई जिलों में वोटिंग प्रतिशत ने पिछले चुनावों के आंकड़े पार कर दिए हैं।
अब बड़ा सवाल यह है — आखिर इतनी बड़ी संख्या में लोगों के मतदान केंद्रों तक पहुंचने की वजह क्या है, और क्या यह बढ़ा हुआ वोटिंग प्रतिशत सत्ता परिवर्तन का संकेत देता है?
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस बार बिहार के मतदाता सिर्फ जाति या पार्टी के नाम पर नहीं, बल्कि स्थानीय मुद्दों और विकास को ध्यान में रखकर वोट कर रहे हैं।
बेरोजगारी और शिक्षा रहे मुख्य मुद्दे
बिहार में इस बार मतदाताओं के मन में सबसे बड़ा सवाल रोज़गार और शिक्षा व्यवस्था को लेकर था।
राज्य में लगातार बढ़ती बेरोजगारी दर और युवाओं के पलायन ने लोगों को नाराज़ किया है।
युवाओं ने बड़ी संख्या में मतदान कर यह संदेश दिया कि वे अब सिर्फ वादों पर नहीं, नौकरी और अवसरों पर भरोसा चाहते हैं।
पटना, गया, भागलपुर और दरभंगा जैसे शहरी इलाकों में युवाओं की कतारें मतदान केंद्रों पर नजर आईं।
सोशल मीडिया पर “इस बार वोट विकास को” जैसे नारे खूब ट्रेंड करते दिखे।
महिलाओं की भागीदारी में रिकॉर्ड इजाफा
बिहार चुनाव में इस बार महिलाओं की भागीदारी ऐतिहासिक रही।
राज्य के कई जिलों में महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों से अधिक दर्ज किया गया।
इसका श्रेय महिला सशक्तिकरण योजनाओं, आरक्षण नीतियों, और स्वयं सहायता समूहों को दिया जा रहा है।
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि महिला मतदाता अब सिर्फ “घर की राय” पर नहीं, बल्कि अपने स्वतंत्र निर्णय के आधार पर वोट कर रही हैं।
नीतीश कुमार सरकार की योजनाओं और विपक्षी दलों की महिलाओं को लेकर घोषणाओं, दोनों ने इस तबके को सक्रिय किया।
पहली बार वोट करने वाले मतदाताओं की भूमिका
इस बार बड़ी संख्या में पहली बार वोट डालने वाले युवा मतदान केंद्र पहुंचे।
इनकी भूमिका चुनाव परिणामों में निर्णायक मानी जा रही है।
इन्हें आकर्षित करने के लिए सभी राजनीतिक दलों ने सोशल मीडिया कैंपेन, कॉलेज आउटरीच, और रील्स-आधारित प्रचार का सहारा लिया।
मतदान के दिन भी कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के छात्र समूहों में “वोट करने चलो” जैसी अपीलें वायरल रहीं।
इन युवाओं के लिए रोज़गार, स्टार्टअप्स और स्किल डेवलपमेंट मुख्य मुद्दे बने रहे।
विपक्ष की रणनीति और जनाक्रोश का असर
इस बार विपक्षी गठबंधन ने महंगाई, भ्रष्टाचार और प्रशासनिक निष्क्रियता जैसे मुद्दों को लेकर जनता में गहरी पैठ बनाई।
विपक्षी दलों की ‘बदलाव यात्रा’, जनसभाएं और घर-घर संपर्क अभियान ने ग्रामीण वोटरों को खासा प्रभावित किया।
कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पिछले कुछ वर्षों में सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में कमी और स्थानीय प्रशासनिक लापरवाही ने मतदाताओं में असंतोष पैदा किया, जो अब मतदान में दिख रहा है।
युवाओं में जागरूकता और सोशल मीडिया की भूमिका
बिहार चुनावों में इस बार सोशल मीडिया ने निर्णायक भूमिका निभाई।
फेसबुक, इंस्टाग्राम और X (ट्विटर) पर हजारों युवाओं ने मतदान को लेकर मुहिम चलाई।
“#VoteForBihar”, “#YouthDecidesFuture” जैसे हैशटैग पूरे राज्य में ट्रेंड कर रहे थे।
एनालिस्ट्स के अनुसार, सोशल मीडिया ने मतदाताओं को न केवल जानकारी दी, बल्कि उन्हें राजनीतिक बहसों का हिस्सा भी बनाया।
युवाओं के बीच यह भावना दिखी कि वोट डालना “फर्ज़” ही नहीं, “आवाज़ उठाने का जरिया” भी है।
जातीय समीकरणों का टूटना
बिहार की राजनीति हमेशा से जातिगत समीकरणों पर टिकी रही है, लेकिन इस बार स्थिति थोड़ी अलग नजर आई।
कई इलाकों में पारंपरिक जातिगत मतदान पैटर्न कमजोर हुआ है।
लोगों ने स्थानीय मुद्दों, उम्मीदवारों की साख और काम के आधार पर वोट देना शुरू किया है।
यह बदलाव राज्य की राजनीति में एक नई सामाजिक जागरूकता का संकेत है, जो भविष्य में चुनावी रणनीतियों को पूरी तरह बदल सकता है।
महिलाओं और युवाओं ने बनाया नया वोट बैंक
इस बार के आंकड़ों से स्पष्ट है कि महिलाएं और युवा मतदाता अब बिहार के चुनावों में निर्णायक शक्ति बन गए हैं।
राजनीतिक दल अब इस वर्ग को नजरअंदाज नहीं कर सकते।
इन दोनों वर्गों की सोच अपेक्षाकृत प्रगतिशील और मुद्दा-केन्द्रित है, जिससे राज्य की राजनीति का पारंपरिक ढांचा बदलता नजर आ रहा है।
क्या संकेत दे रहा है रिकॉर्ड मतदान प्रतिशत?
इतिहास बताता है कि जब भी बिहार में रिकॉर्ड वोटिंग हुई है, सत्ता परिवर्तन की संभावना बढ़ी है।
2015 और 2020 के चुनावों में भी ज्यादा वोटिंग ने अप्रत्याशित नतीजे दिए थे।
इस बार भी राजनीतिक पंडितों का मानना है कि बढ़े हुए वोट प्रतिशत का फायदा विपक्षी गठबंधन को मिल सकता है, हालांकि अंतिम फैसला ईवीएम खोलने के बाद ही साफ होगा।
राजनीतिक विश्लेषक प्रो. राजीव रंजन के अनुसार,
“यह वोटिंग प्रतिशत सिर्फ गुस्से का नहीं, बल्कि उम्मीद का संकेत है। बिहार के मतदाता अब विकास और रोजगार को लेकर गंभीर हो गए हैं।”
ग्रामीण इलाकों में भी उत्साह
ग्रामीण इलाकों में भी इस बार मतदान को लेकर जबरदस्त उत्साह देखने को मिला।
कई गांवों में महिलाएं और बुजुर्ग सुबह से ही मतदान केंद्रों पर लाइन में खड़े नजर आए।
यह सक्रियता दर्शाती है कि ग्रामीण मतदाता अब सिर्फ ‘लालू बनाम नीतीश’ की राजनीति से आगे सोच रहे हैं।
लोकतंत्र की परिपक्वता की ओर बिहार
2025 का बिहार चुनाव सिर्फ एक राजनीतिक मुकाबला नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक परिपक्वता की मिसाल बन गया है।
लोगों ने दिखा दिया है कि वे अपने राज्य के भविष्य को लेकर सजग हैं।
चाहे नतीजा किसी के पक्ष में जाए या विपक्ष में, इतना तय है कि इस बार बिहार ने मतदान के माध्यम से अपनी आवाज़ को पहले से कहीं ज़्यादा मज़बूती से दर्ज किया है।