
कभी भारतीय युवाओं के लिए सबसे आकर्षक प्रवास गंतव्य माने जाने वाले कनाडा में अब स्थायी निवास (PR) पाना दिन-ब-दिन कठिन होता जा रहा है। जो लोग बेहतर भविष्य और स्थायी जीवन की तलाश में वहां पहुंचे थे, अब उन्हें Comprehensive Ranking System (CRS) स्कोर, सीमित ड्रॉ और बदलती नीतियों के कारण संघर्ष करना पड़ रहा है।
🇨🇦 हरप्रीत कौर की कहानी: सपनों से हकीकत तक का सफर
पंजाब की हरप्रीत कौर ने 2019 में कनाडा का रुख किया था। उन्हें उम्मीद थी कि पढ़ाई पूरी करने के बाद वर्क परमिट और फिर स्थायी निवास मिल जाएगा। लेकिन हालात अब पूरी तरह बदल चुके हैं।
“जब आई थी तब PR के लिए कटऑफ 470 था, अब यह 540 से ऊपर चला गया है। इतने ऊंचे स्कोर के साथ चयन की संभावना लगभग खत्म है,” — हरप्रीत बताती हैं।
उनकी तरह हजारों भारतीय छात्र अब “नंबर गेम” में फंसे हैं, जहां मेहनत, डिग्री और अनुभव सब कुछ होते हुए भी PR तक पहुंचना नामुमकिन सा हो गया है।
📈 CRS स्कोर: जहां सपने थम जाते हैं
कनाडा की इमिग्रेशन प्रणाली पॉइंट आधारित है। उम्मीदवारों को उम्र, शिक्षा, अनुभव और भाषा दक्षता के आधार पर अंक दिए जाते हैं।
पहले जहां औसत CRS स्कोर 470 के आसपास रहता था, वहीं अब Express Entry में यह 540–550 तक पहुंच गया है।
इमिग्रेशन विशेषज्ञों के अनुसार, “जो प्रोफाइल पहले चयनित हो जाती थीं, अब वे भी रिजेक्ट हो रही हैं। नीतियों में बार-बार बदलाव से युवाओं में निराशा बढ़ रही है।”
💸 कनाडा में बढ़ती महंगाई और घटते अवसर
कनाडा में रहना पहले से कहीं ज्यादा महंगा हो गया है। टोरंटो और वैंकूवर जैसे शहरों में किराया 2,000 कनाडाई डॉलर से ऊपर पहुंच चुका है।
पार्ट-टाइम नौकरियां कम हो गई हैं और छात्रों के लिए जीवन-यापन कठिन होता जा रहा है।
“कभी सोचा नहीं था कि इतने खर्च के बाद भी PR मिलना इतना मुश्किल होगा,” — दिल्ली की छात्रा अनुष्का सिंह बताती हैं।
🧾 एक्सप्रेस एंट्री में सख्ती और घटते ड्रॉ
पहले हर दो हफ्तों में होने वाले PR ड्रॉ अब कम हो गए हैं। IRCC (Immigration, Refugees and Citizenship Canada) अब केवल विशिष्ट पेशों — जैसे हेल्थकेयर, STEM, और ट्रेड्स — के लिए ही चयन कर रहा है।
इसका असर यह हुआ है कि अन्य क्षेत्रों के भारतीय छात्रों और कर्मचारियों के लिए अवसर सीमित हो गए हैं।
🧮 ‘नंबर गेम’ में पिछड़ रहे हैं भारतीय आवेदक
IELTS में 8+ स्कोर, मास्टर्स डिग्री और अनुभव होने के बावजूद कई भारतीय आवेदक कटऑफ से नीचे रह जाते हैं।
अब PR सिर्फ योग्यता नहीं, बल्कि भाग्य का खेल बन चुका है।
“हम मेहनत कर रहे हैं, टैक्स दे रहे हैं, लेकिन स्कोर न बढ़ने से PR नहीं मिल रहा,” — टोरंटो के आईटी प्रोफेशनल जसप्रीत सिंह कहते हैं।
🕰️ वर्क परमिट का संकट और अनिश्चित भविष्य
कई छात्रों का Post-Graduation Work Permit (PGWP) खत्म होने वाला है, और PR के लिए वे अब भी इंतज़ार में हैं।
कई लोगों को मजबूरन देश छोड़ने की नौबत आ रही है।
“घर, कार, सब कुछ लिया — लेकिन PR न मिलने पर सब दांव पर लग गया,” — जसप्रीत बताते हैं।
📉 कनाडा का बदलता इमिग्रेशन परिदृश्य
विशेषज्ञों के अनुसार, कनाडा अब अस्थायी निवासियों की संख्या कम कर रहा है ताकि घरेलू रोजगार और जनसंख्या संतुलन बनाए रखा जा सके।
बेरोजगारी दर 6% से ऊपर चली गई है, जिससे नए आवेदकों के लिए जगह कम होती जा रही है।
🇮🇳 भारत में बढ़ती चिंता
भारत में स्टडी वीज़ा एजेंसियों के बाहर अभी भी लंबी कतारें हैं, लेकिन उत्साह की जगह अब डर हावी है।
कई परिवारों का कहना है कि विदेश भेजने के बाद भी अब सफलता की गारंटी नहीं रही।
“पहले दो साल में PR मिल जाता था, अब पांच साल बाद भी इंतज़ार है,” — जालंधर के अभिभावक बताते हैं।
🌍 क्या हैं विकल्प?
कई सलाहकार अब छात्रों को ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी और यूके जैसे देशों की ओर देखने की सलाह दे रहे हैं।
जो कनाडा में हैं, वे Provincial Nominee Program (PNP) या Employer-Sponsored Visa जैसे रास्ते आज़मा सकते हैं।
💡 निष्कर्ष
कनाडा, जो कभी अवसरों की धरती माना जाता था, अब संघर्ष की भूमि बनता जा रहा है।
हरप्रीत, जसप्रीत और अनुष्का जैसे युवाओं की कहानी इस बात की गवाही देती है कि अब PR केवल मेहनत से नहीं, बल्कि नीतियों और भाग्य के मेल से मिलती है।
भारत से कनाडा में बसने का सपना अब पहले जैसा आसान नहीं रहा — और यह ‘सपना’ अब कई लोगों के लिए ‘संघर्ष’ बन गया है।