दिल्ली एयरपोर्ट पर साइबर अटैक का खतरा: GPS सिग्नल से छेड़छाड़ की जांच में जुटी DGCA, जानिए कैसे हुआ हाईटेक हमला

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भारत के सबसे व्यस्त और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण एयरपोर्ट — दिल्ली का इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा (IGI Airport) — इन दिनों एक गंभीर साइबर खतरे की जद में है। हाल ही में सामने आई रिपोर्टों के अनुसार, एयरपोर्ट के एयरस्पेस में GPS Spoofing यानी फर्जी सैटेलाइट सिग्नल के संकेत मिले हैं। इन गड़बड़ियों के कारण विमानों की नेविगेशन प्रणाली प्रभावित हुई, जिससे कई उड़ानों की दिशा और संचार में दिक्कतें आईं।

भारत की नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) ने इस मामले को बेहद गंभीर मानते हुए जांच शुरू कर दी है। शुरुआती जांच में पाया गया है कि दिल्ली एयरस्पेस के ऊपर पिछले कुछ दिनों से फर्जी GPS सिग्नल प्रसारित हो रहे थे, जिससे विमानों के पायलटों को असली और नकली सिग्नल में फर्क करना मुश्किल हो गया। हालांकि, अब तक किसी विमान की उड़ान सुरक्षा को सीधा नुकसान नहीं पहुंचा है, लेकिन यह घटना भारत की एविएशन साइबर सुरक्षा पर बड़े खतरे का संकेत देती है।


क्या है GPS Spoofing?

GPS Spoofing एक ऐसी तकनीक है जिसमें फर्जी उपग्रह सिग्नल भेजकर असली GPS डेटा को भ्रमित कर दिया जाता है। यानी किसी भी विमान, जहाज या वाहन की वास्तविक लोकेशन को बदलकर गलत दिशा या गलत ऊंचाई का संकेत दिखाया जा सकता है। यह साइबर अटैक का एक अत्याधुनिक तरीका है, जिसे रोकना पारंपरिक सुरक्षा उपायों से बेहद कठिन होता है।

साइबर एक्सपर्ट्स के मुताबिक, यदि GPS Spoofing को समय रहते रोका न जाए, तो यह एविएशन ट्रैफिक कंट्रोल (ATC), रनवे ऑटोनॉमस सिस्टम्स, और सैटेलाइट-आधारित नेविगेशन को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।


DGCA ने दिए कड़े निर्देश

DGCA ने इस घटना की पुष्टि करते हुए सभी एयरलाइनों और पायलटों को विशेष सर्कुलर जारी किया है। इस सर्कुलर में कहा गया है कि यदि उड़ान के दौरान किसी भी प्रकार की GPS असंगति (GPS Anomaly) महसूस हो, तो तुरंत ATC को सूचित किया जाए। साथ ही, सभी विमानों को इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम (INS) और पारंपरिक रेडियो नेविगेशन का बैकअप तैयार रखने के निर्देश दिए गए हैं।

DGCA अधिकारियों ने बताया कि यह संभव है कि GPS Spoofing का स्रोत भारतीय वायुसीमा के बाहर से सक्रिय किया गया हो। इसलिए, केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन (NTRO) और भारतीय वायु सेना की साइबर सेल से तकनीकी सहायता मांगी है।


दिल्ली एयरपोर्ट क्यों है संवेदनशील?

दिल्ली एयरपोर्ट न सिर्फ भारत का सबसे व्यस्त एयरस्पेस है, बल्कि यह दक्षिण एशिया का तीसरा सबसे बड़ा एविएशन हब भी है। हर दिन यहां लगभग 1,400 से अधिक उड़ानें संचालित होती हैं, जिनमें अंतरराष्ट्रीय और घरेलू दोनों तरह की सेवाएं शामिल हैं।

इस एयरस्पेस में जरा सी तकनीकी गड़बड़ी भी बड़ी दुर्घटना का कारण बन सकती है। यही वजह है कि DGCA और एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (AAI) ने मिलकर एक संयुक्त ऑपरेशन शुरू किया है ताकि सिग्नल की असली लोकेशन और सोर्स का पता लगाया जा सके।


पायलटों ने दी थी शुरुआती चेतावनी

जानकारी के अनुसार, कई पायलटों ने बीते हफ्ते ATC को रिपोर्ट दी थी कि उन्हें सैटेलाइट नेविगेशन में असामान्य उतार-चढ़ाव महसूस हो रहा है। कुछ मामलों में तो विमान का सिस्टम कुछ सेकंड के लिए गलत दिशा दिखाने लगा। हालांकि, अनुभवी पायलटों ने तुरंत मैन्युअल नियंत्रण लेकर स्थिति संभाल ली।

एक वरिष्ठ पायलट ने नाम न बताने की शर्त पर बताया, “जब GPS Spoofing होती है, तो विमान के नेविगेशन सिस्टम को लगता है कि वो किसी दूसरी लोकेशन पर है। यह बेहद खतरनाक स्थिति है, खासकर लैंडिंग और टेकऑफ के दौरान।”


क्या किसी देश की भूमिका है पीछे?

सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि यह GPS Spoofing किसी दुश्मन देश या संगठित साइबर ग्रुप की ओर से किया गया हो सकता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रूस और ईरान जैसे देशों में पहले भी इस तरह की घटनाएं दर्ज की गई हैं, जहां GPS Spoofing का इस्तेमाल जासूसी या मिलिट्री उद्देश्यों के लिए किया गया था।

भारत में यह पहली बार है जब किसी सिविल एविएशन सेक्टर में इतनी बड़ी साइबर गड़बड़ी सामने आई है। इसके बाद से सुरक्षा एजेंसियों ने अन्य प्रमुख एयरपोर्ट जैसे मुंबई, चेन्नई, हैदराबाद और बेंगलुरु में भी सतर्कता बढ़ा दी है।


DGCA और DGCA-NTRO की संयुक्त जांच

DGCA की साइबर विंग अब NTRO और इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) के साथ मिलकर फर्जी सिग्नल के स्रोत का विश्लेषण कर रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह सिग्नल किसी मोबाइल या हैंडहेल्ड ट्रांसमीटर से नहीं, बल्कि किसी हाई-पावर ग्राउंड स्टेशन से भेजा गया हो सकता है।

ISRO ने भी इस पर बयान जारी करते हुए कहा कि भारत की सैटेलाइट प्रणाली NavIC (Navigation with Indian Constellation) को मजबूत किया जा रहा है ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोका जा सके।


यात्रियों की सुरक्षा पर असर

हालांकि DGCA ने यात्रियों को आश्वस्त किया है कि सभी उड़ानें सुरक्षित हैं और कोई बड़ा जोखिम नहीं है, लेकिन इस घटना के चलते यात्रियों में दहशत देखी जा रही है। कुछ उड़ानें थोड़ी देर से रवाना हुईं क्योंकि ATC ने अतिरिक्त जांच की प्रक्रिया अपनाई।

साइबर विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले समय में एविएशन साइबर सुरक्षा को लेकर नीतिगत बदलाव जरूरी होंगे। DGCA पहले ही सभी एयरलाइनों से कहा है कि वे AI आधारित सिग्नल एनालिसिस सिस्टम इंस्टॉल करें, जिससे रीयल-टाइम में किसी भी GPS असंगति की पहचान की जा सके।


साइबर युद्ध का नया रूप

डिजिटल युग में युद्ध का स्वरूप तेजी से बदल रहा है। अब बंदूकों और मिसाइलों से ज्यादा खतरा डेटा और सिग्नल के नियंत्रण से है। GPS Spoofing जैसे हमले एक देश की न केवल सैन्य बल्कि सिविल इन्फ्रास्ट्रक्चर को भी पंगु बना सकते हैं।

भारत ने हाल के वर्षों में अपने साइबर डिफेंस नेटवर्क को मजबूत किया है, लेकिन एविएशन सेक्टर में अभी भी कई कमजोरियां हैं। यही वजह है कि DGCA ने अब साइबर वल्नरेबिलिटी ऑडिट शुरू करने की योजना बनाई है।


निष्कर्ष

दिल्ली एयरपोर्ट पर GPS Spoofing का यह मामला भारत के एविएशन इतिहास में एक बड़ा अलर्ट साबित हुआ है। यह न सिर्फ एयर ट्रैफिक मैनेजमेंट के लिए चुनौती है बल्कि देश की राष्ट्रीय सुरक्षा से भी जुड़ा हुआ है। DGCA, ISRO और NTRO अब इस बात की जांच में जुटे हैं कि यह सिग्नल कहां से आया और किस उद्देश्य से भेजा गया था।

विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले समय में भारत को अपने NavIC सिस्टम और साइबर सिक्योरिटी फ्रेमवर्क को मजबूत करना होगा ताकि कोई भी बाहरी ताकत हमारे आकाश को असुरक्षित न बना सके।

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