
दिल्ली में वायु प्रदूषण का संकट लगातार भयावह रूप ले रहा है।
नवंबर की शुरुआत के साथ ही राजधानी की हवा एक बार फिर जहरीली हो गई है।
CPCB (केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड) के आंकड़ों के मुताबिक, इस बार दिल्ली की हवा पिछले 10 वर्षों में सबसे खराब स्तर पर पहुंच चुकी है।
सांस लेना तक मुश्किल हो गया है — सड़कों पर धुंध की मोटी परत, आंखों में जलन और गले में खराश आम हो चली है।
🔹 दिल्ली की हवा: इतिहास का सबसे खराब अक्टूबर-नवंबर
2025 के अक्टूबर के आखिरी हफ्ते और नवंबर की शुरुआत में दिल्ली का औसत AQI 470 के पार पहुंच गया —
जो “गंभीर (Severe)” श्रेणी में आता है।
यह पिछले 10 सालों का सबसे खराब स्तर है।
CPCB के अनुसार, दिल्ली में पिछले साल (2024) इसी समय AQI औसतन 390 था,
जबकि 2015 में यह 320 के आसपास दर्ज हुआ था।
🔹 प्रदूषण के मुख्य कारण क्या हैं?
| कारण | विवरण |
|---|---|
| 🌾 पराली जलाना | हरियाणा और पंजाब में फसलों की कटाई के बाद पराली जलाने से बड़ी मात्रा में धुआं दिल्ली की हवा में मिल रहा है। |
| 🏗️ निर्माण कार्य (Construction Dust) | दिल्ली-NCR में लगातार चल रहे बिल्डिंग, मेट्रो और रोड प्रोजेक्ट्स से उड़ती धूल AQI को बढ़ा रही है। |
| 🚗 वाहन प्रदूषण | निजी और डीजल वाहनों से निकलने वाला धुआं दिल्ली की हवा में सबसे बड़ा योगदान देता है। |
| 🔥 औद्योगिक उत्सर्जन | NCR में मौजूद छोटे-बड़े कारखानों से निकलने वाला धुआं प्रदूषण की एक अहम वजह है। |
| 💨 मौसमीय स्थितियां | हवा की गति कम होने और तापमान गिरने से प्रदूषक कण जमीन के करीब जम जाते हैं। |
🔹 क्यों कहा जा रहा ‘गैस चैंबर’?
दिल्ली में इस समय हवा में PM2.5 और PM10 कणों की मात्रा WHO मानकों से 10 गुना तक अधिक पाई गई है।
जहां WHO का मानक PM2.5 के लिए 25 µg/m³ है, वहीं दिल्ली में यह 300-400 µg/m³ तक पहुंच गया है।
इसी वजह से शहर को एक बार फिर “Gas Chamber of India” कहा जाने लगा है।
🔹 सरकार की सख्त कार्रवाई
दिल्ली सरकार ने GRAP-IV (Graded Response Action Plan) लागू कर दिया है, जिसके तहत:
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🚫 निर्माण कार्यों पर पूरी तरह रोक
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🚗 डीजल गाड़ियों की एंट्री बंद
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🏫 स्कूलों में छुट्टियों पर विचार
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🧱 धूल रोकने के लिए वॉटर स्प्रिंकलर और एंटी-स्मॉग गन का इस्तेमाल
इसके अलावा क्लाउड सीडिंग (Artificial Rain) की तैयारी भी चल रही है ताकि जहरीले कणों को नीचे गिराया जा सके।
🔹 स्वास्थ्य पर प्रभाव
दिल्ली में अस्पतालों में सांस, अस्थमा और आंखों से जुड़ी शिकायतों में 40% तक बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
डॉक्टरों का कहना है कि यह प्रदूषण केवल बच्चों और बुजुर्गों के लिए नहीं, बल्कि स्वस्थ लोगों के लिए भी खतरनाक है।
AIIMS के एक सीनियर पल्मोनोलॉजिस्ट के अनुसार —
“दिल्ली में एक दिन की हवा में सांस लेना, लगभग 10 सिगरेट पीने के बराबर नुकसान पहुंचाता है।”
🔹 लोग क्या कर सकते हैं?
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😷 घर से निकलते वक्त N95 मास्क का प्रयोग करें।
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🌿 घर के अंदर एयर प्यूरीफायर और पौधे जैसे मनीप्लांट, स्नेक प्लांट लगाएं।
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🚴♂️ वाहन शेयरिंग या पब्लिक ट्रांसपोर्ट का उपयोग करें।
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💧 पर्याप्त पानी पीते रहें ताकि शरीर में टॉक्सिन्स बाहर निकल सकें।
🔹 आगे की राह
विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक पराली जलाने पर सख्त नियंत्रण,
वाहन प्रदूषण पर ठोस नीतियां और NCR की इंडस्ट्री पर सख्ती नहीं होती,
तब तक दिल्ली हर साल अक्टूबर-नवंबर में जहरीली गैस चैंबर बनती रहेगी।
🏙️ निष्कर्ष
दिल्ली की हवा आज फिर सवालों के घेरे में है —
तकनीक, प्रशासन और जनजागरूकता, तीनों को मिलकर काम करना होगा।
वरना “दिलवालों की दिल्ली” जल्द ही “सांस रोक देने वाली दिल्ली” में बदल जाएगी।