
बॉलीवुड के हीमैन धर्मेंद्र सिर्फ अपने एक्शन और रोमांस के लिए नहीं, बल्कि अपने निर्णायक फैसलों और दिल से किए वादों के लिए भी जाने जाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कभी धर्मेंद्र को ब्लॉकबस्टर फिल्म ‘जंजीर’ का ऑफर मिला था, और उन्होंने यह फिल्म परिवार के दबाव और एक भावनात्मक वादे के चलते ठुकरा दी थी?
यह वही फिल्म थी जिसने बाद में अमिताभ बच्चन को “एंग्री यंग मैन” बना दिया और हिंदी सिनेमा का चेहरा हमेशा के लिए बदल दिया।
जब सलीम-जावेद ने धर्मेंद्र को दी थी ‘जंजीर’
1973 में रिलीज़ हुई फिल्म ‘जंजीर’ को लिखने वाले सलीम खान और जावेद अख्तर ने सबसे पहले यह स्क्रिप्ट धर्मेंद्र को ऑफर की थी।
उस समय धर्मेंद्र इंडस्ट्री के टॉप एक्टर्स में गिने जाते थे। उन्होंने ‘शोले’, ‘अनुपमा’, ‘सीता और गीता’, ‘चुपके चुपके’ जैसी कई सुपरहिट फिल्मों से अपनी अलग पहचान बनाई थी।
सलीम खान का मानना था कि धर्मेंद्र का इंटेंस लुक और उनकी गंभीर अदाकारी इस रोल के लिए बिल्कुल परफेक्ट थी। उन्होंने धर्मेंद्र को स्क्रिप्ट सुनाई और एक्शन से भरपूर इस फिल्म के लिए हामी भी मिल गई।
फैमिली की ओर से मिला सख्त अल्टीमेटम
हालांकि, कहानी में मोड़ तब आया जब धर्मेंद्र ने यह बात अपने घर में बताई।
उनके परिवार के एक सदस्य ने उनसे कहा —
“अगर तुम यह फिल्म करोगे तो मेरा मरा मुंह देखना पड़ेगा।”
धर्मेंद्र ने अपने परिवार के उस सदस्य के आंसू भरे शब्दों को नजरअंदाज नहीं किया।
वह भावुक हो गए और अपने परिवार की इच्छा के आगे झुक गए।
उन्होंने सलीम-जावेद से माफी मांगते हुए कहा कि वे फिल्म नहीं कर सकते।
बाद में सलीम खान ने इस बात का खुलासा किया था कि धर्मेंद्र की इस भावनात्मक मजबूरी को देखकर उन्होंने किसी तरह का दबाव नहीं बनाया और फिल्म के लिए नया चेहरा तलाशने का फैसला किया।
अमिताभ बच्चन की किस्मत ने ली करवट
‘जंजीर’ के लिए तब कई एक्टर्स से संपर्क किया गया, लेकिन किसी ने भी फिल्म के गहरे और गंभीर किरदार को स्वीकार नहीं किया।
आखिरकार सलीम-जावेद की जोड़ी ने एक स्ट्रगलिंग एक्टर अमिताभ बच्चन को यह मौका दिया।
यह वही फिल्म थी जिसने अमिताभ को रातोंरात सुपरस्टार बना दिया और उन्हें “एंग्री यंग मैन” की उपाधि दी।
सलीम खान ने बाद में कहा था —
“अगर धर्मेंद्र ने ‘जंजीर’ की होती, तो शायद अमिताभ बच्चन का करियर वैसा नहीं बन पाता जैसा आज है।”
धर्मेंद्र का अफसोस और दिल की बात
धर्मेंद्र ने खुद कई इंटरव्यू में इस किस्से का जिक्र किया है। उन्होंने कहा —
“‘जंजीर’ मुझे बहुत पसंद आई थी। सलीम खान और जावेद अख्तर की लिखी स्क्रिप्ट जब सुनी थी, तो लगा कि यह फिल्म मील का पत्थर साबित होगी। लेकिन परिवार का आदेश मेरे लिए सर्वोपरि था।”
उन्होंने आगे कहा,
“मुझे दुख नहीं कि मैंने वह फिल्म नहीं की, क्योंकि अमिताभ ने इसे जिस तरह निभाया, वह बेहतरीन था। लेकिन अगर मैंने वह फिल्म की होती, तो शायद मेरी जिंदगी की दिशा कुछ और होती।”
परिवार का डर क्या था?
धर्मेंद्र के परिवार को डर था कि ‘जंजीर’ जैसी एक्शन और डार्क फिल्म उनके “रोमांटिक और सज्जन इमेज” को नुकसान पहुंचा सकती है।
धर्मेंद्र उस समय अपनी चॉकलेट-बॉय छवि और पारिवारिक फिल्मों के लिए जाने जाते थे।
परिवार चाहता था कि वे अपने उस सौम्य किरदार की पहचान को बरकरार रखें।
यही कारण था कि उन्होंने भावनाओं में आकर यह बड़ा फैसला लिया — जो न सिर्फ उनके लिए, बल्कि पूरे बॉलीवुड के लिए एक ऐतिहासिक मोड़ साबित हुआ।
सलीम खान ने किया खुलासा
सलीम खान ने एक पुराने इंटरव्यू में कहा था,
“धर्मेंद्र उस वक्त बहुत लोकप्रिय थे और हम चाहते थे कि वही ‘विजय खन्ना’ का रोल करें। लेकिन जब उन्होंने मना किया, तो हमने एक नए चेहरे की तलाश शुरू की। उस वक्त अमिताभ के अंदर गुस्सा, स्ट्रगल और जोश था, जो किरदार में चाहिए था — और वही उन्हें परफेक्ट बनाता था।”
‘जंजीर’ बनी गेम चेंजर
‘जंजीर’ रिलीज़ होते ही सुपरहिट साबित हुई। इस फिल्म ने न सिर्फ अमिताभ बच्चन का करियर बना दिया, बल्कि भारतीय सिनेमा को एक नई दिशा दी।
70 के दशक में जब रोमांटिक और पारिवारिक कहानियां हावी थीं, तब ‘जंजीर’ ने एक्शन और सामाजिक गुस्से से भरे नायक की छवि को जन्म दिया।
इस फिल्म ने सलीम-जावेद की जोड़ी को भी इंडस्ट्री का सबसे भरोसेमंद लेखक बना दिया।
धर्मेंद्र और अमिताभ की दोस्ती
दिलचस्प बात यह है कि ‘जंजीर’ धर्मेंद्र से छूट जाने के बावजूद उन्होंने कभी अमिताभ के प्रति कोई नाराजगी नहीं दिखाई।
इसके उलट, दोनों ने बाद में ‘शोले’ जैसी ऐतिहासिक फिल्म में साथ काम किया, जो आज भी भारतीय सिनेमा का स्वर्ण अध्याय मानी जाती है।
धर्मेंद्र ने ‘शोले’ की शूटिंग के दौरान अमिताभ को हमेशा “भाई” की तरह सम्मान दिया।
आज भी फैंस को खलता है ‘क्या होता अगर…’
फिल्म प्रेमियों के बीच आज भी यह चर्चा होती है — अगर ‘जंजीर’ में धर्मेंद्र होते, तो फिल्म का रंग कैसा होता?
शायद फिल्म की ऊर्जा वैसी ही होती, लेकिन अमिताभ बच्चन की तरह का ‘रॉ इमोशन’ शायद नहीं दिखता।
कई सिनेप्रेमी मानते हैं कि यह किस्मत का खेल था — धर्मेंद्र ने जो छोड़ा, उसी ने अमिताभ को बना दिया।
निष्कर्ष
धर्मेंद्र का यह निर्णय भावनात्मक था, लेकिन इतिहास में यह एक ऐसे मोड़ के रूप में दर्ज है जिसने भारतीय सिनेमा की दिशा बदल दी।
‘जंजीर’ न केवल एक फिल्म थी, बल्कि एक युग की शुरुआत थी।
धर्मेंद्र ने भले ही इसे छोड़ा, लेकिन उनके उस त्याग ने एक नई कहानी लिख दी — एक ऐसी कहानी, जिसमें किस्मत ने दो दिग्गजों को अलग रास्तों पर भेजा, और दोनों ने ही अमरता हासिल की।