अमुथवल्ली पेशे से फिजियोथेरेपिस्ट हैं और उन्होंने तीन दशक पहले स्कूल खत्म करने के बाद एमबीबीएस करने का सपना देखा था, लेकिन वह पूरा नहीं हो पाया। अब जब बेटी नीट की तैयारी कर रही थी, तो उन्होंने खुद भी वही किताबें लेकर पढ़ाई शुरू की। अमुथवल्ली बताती है कि मेरी बेटी मेरी सबसे बड़ी प्रेरणा थी। उसके पढ़ते हुए देखकर मुझे फिर से सपना जीने का हौसला मिला। मैंने उसकी किताबें लीं और खुद से तैयारी शुरू कर दी।
बेटी बनी मां की मार्गदर्शक
संयुक्ता सीबीएसई बोर्ड की छात्रा हैं और उन्होंने कोचिंग क्लास भी जॉइन की थी। वहीं, वे जो किताबें पढ़ती थीं, वही किताबें मां के लिए भी काम आईं। संयुक्ता कहती हैं, “मैं जो भी पढ़ती थी, उसे मां को समझाकर याद करती थी। इससे मुझे भी समझने में मदद मिलती थी।”