
राजस्थान हाईकोर्ट ने हाल ही में एक अहम निर्णय सुनाया है,
जिसने “अनुकंपा नियुक्ति (Compassionate Appointment)” के दायरे और परिवार के अधिकारों की परिभाषा को नया रूप दे दिया है।
कोर्ट ने आदेश दिया कि एक बहू, जिसे उसके दिवंगत पति की मृत्यु के बाद सरकारी नौकरी अनुकंपा आधार पर दी गई थी,
उसे अपनी मासिक सैलरी से ₹20,000 अपने ससुर को देने होंगे।
🔹 क्या है पूरा मामला?
यह मामला राजस्थान के झुंझुनूं जिले का है।
यहां एक सरकारी कर्मचारी की असामयिक मृत्यु के बाद
उसकी पत्नी (यानी मृतक की बहू) को अनुकंपा नियुक्ति दी गई थी,
ताकि परिवार की आर्थिक स्थिति को सहारा मिल सके।
लेकिन कुछ समय बाद मृतक के पिता (ससुर) ने कोर्ट में याचिका दायर की।
उन्होंने आरोप लगाया कि बहू ने नौकरी तो परिवार की आर्थिक मदद के लिए ली,
लेकिन अब वह उनकी कोई आर्थिक सहायता नहीं कर रही।
🔹 ससुर की दलीलें
ससुर का कहना था कि—
“अनुकंपा नियुक्ति केवल मृत कर्मचारी के परिवार को सहारा देने के लिए दी जाती है,
न कि किसी एक सदस्य के निजी हित के लिए।
मैं अपने बेटे की मृत्यु के बाद आर्थिक रूप से असहाय हो गया हूं,
इसलिए बहू को अपनी आय से परिवार का हिस्सा देना चाहिए।”
🔹 बहू की ओर से क्या कहा गया?
बहू ने जवाब दिया कि—
“अनुकंपा नौकरी मुझे मेरे पति की मृत्यु के बाद सरकार ने दी,
अब मैं उस पद पर अपनी योग्यता और परिश्रम से कार्य कर रही हूं।
मेरी सैलरी मेरी व्यक्तिगत आय है, और मैं किसी कानूनी रूप से बंधी नहीं हूं
कि उसमें से किसी को अनिवार्य हिस्सा दूं।”
🔹 हाईकोर्ट ने क्या कहा?
राजस्थान हाईकोर्ट (जयपुर बेंच) ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा—
“अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य मृतक कर्मचारी के परिवार को
आर्थिक रूप से स्थिरता प्रदान करना है।
इस नियुक्ति का लाभ पूरे परिवार का होना चाहिए,
न कि केवल उस सदस्य का जिसने नौकरी पाई।”
कोर्ट ने माना कि मृतक के माता-पिता भी “परिवार” की परिभाषा में आते हैं,
इसलिए बहू को यह सुनिश्चित करना होगा कि वे आर्थिक रूप से असहाय न रहें।
🔹 फैसले की मुख्य बातें
| बिंदु | विवरण |
|---|---|
| ⚖️ फैसला सुनाने वाली अदालत | राजस्थान हाईकोर्ट, जयपुर बेंच |
| 👩⚖️ मुख्य आदेश | बहू अपनी सैलरी से ₹20,000 प्रति माह ससुर को दे |
| 📜 कानूनी आधार | Compassionate Appointment – पूरे परिवार के हित के लिए होती है |
| 👨👩👦 ‘परिवार’ की परिभाषा | पति, पत्नी, बच्चे और माता-पिता सभी शामिल |
🔹 कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया
हाईकोर्ट ने कहा कि—
-
बहू को अपनी नौकरी से किसी तरह की हानि नहीं होगी।
-
यह आदेश केवल परिवार के पुनर्वास के उद्देश्य से दिया गया है।
-
अगर भविष्य में ससुर की आर्थिक स्थिति बेहतर होती है, तो
वह इस आदेश में बदलाव के लिए अदालत में आवेदन कर सकते हैं।
🔹 कानूनी विशेषज्ञों की राय
कानूनी जानकारों का कहना है कि यह फैसला
“अनुकंपा नियुक्ति” की सामाजिक भावना को मजबूत करता है।
अब यह साफ संदेश देता है कि
“सरकारी नौकरी पाने का उद्देश्य केवल व्यक्तिगत लाभ नहीं,
बल्कि मृतक कर्मचारी के पूरे परिवार की भलाई है।”
🔹 जनता की प्रतिक्रिया
सोशल मीडिया पर इस फैसले को लेकर मिश्रित प्रतिक्रियाएं आ रही हैं —
कुछ लोगों ने इसे “न्यायपूर्ण और संवेदनशील निर्णय” बताया,
जबकि अन्य ने सवाल उठाया कि
“क्या किसी की सैलरी पर कोर्ट इस तरह का निर्देश दे सकता है?”
🏁 निष्कर्ष
राजस्थान हाईकोर्ट का यह फैसला न केवल परिवारिक जिम्मेदारी की व्याख्या करता है,
बल्कि यह भी दर्शाता है कि सरकारी लाभ सामाजिक संतुलन के लिए होते हैं,
न कि केवल व्यक्तिगत लाभ के लिए।
अब यह आदेश आने वाले समय में
अनुकंपा नियुक्ति से जुड़े अन्य मामलों के लिए भी मिसाल (precedent) बन सकता है।