आरएसएस का शुरुआती दौर: जब संगठन में होता था ‘सरसेनापति’, खाकी कमीज पहनते थे स्वयंसेवक

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना को सौ साल पूरे होने जा रहे हैं। इस लंबे सफर में संगठन की संरचना और स्वरूप कई बार बदला है। आज जिस संघ को लोग “सरसंघचालक” और “सरकार्यवाह” जैसे पदों से जानते हैं, उसमें कभी ‘सरसेनापति’ नाम का एक पद भी हुआ करता था। इतना ही नहीं, संघ की शाखाओं में स्वयंसेवक सिर्फ खाकी निकर ही नहीं बल्कि खाकी कमीज भी पहनते थे।

सरसेनापति पद की शुरुआत

1929 में नागपुर में संघ के वरिष्ठ स्वयंसेवकों की बैठक हुई थी, जिसमें संगठन को औपचारिक ढांचा देने का निर्णय लिया गया। उसी समय तीन पद तय हुए – सरसंघचालक, सरसेनापति और सरकार्यवाह।

  • डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार पहले सरसंघचालक बने।

  • मार्तंडराव जोग को संघ का पहला सरसेनापति नियुक्त किया गया।

इस पद का मकसद सैन्य नेतृत्व जैसा नहीं था, बल्कि संघ की शाखाओं में होने वाले शारीरिक प्रशिक्षण, व्यायाम और अनुशासनात्मक गतिविधियों की देखरेख करना था।

मार्तंडराव जोग – पहले और आखिरी सरसेनापति

मार्तंडराव जोग पहले भारतीय सेना में रह चुके थे और बाद में कांग्रेस सेवा दल से जुड़े। 1930 के दशक में वे पूरी तरह संघ से जुड़ गए। उन्होंने स्वयंसेवकों के साथ शाखाओं का संचालन किया और शारीरिक अभ्यास को लोकप्रिय बनाया।
गुरु गोलवलकर को लिखे अपने पत्र में जोग ने लिखा था कि संघ ने उनके व्यक्तित्व को निखारा और डॉ. हेडगेवार के साथ बिताया समय उनके जीवन का अहम हिस्सा रहा।

सरसेनापति पद क्यों हुआ समाप्त

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार ने ऐसा कानून बनाया, जिसमें किसी भी संगठन को सैन्य जैसी वर्दी पहनने या हथियारों का प्रशिक्षण देने पर रोक लगा दी गई।

  • 5 अगस्त 1940 को इस संबंध में अध्यादेश लागू हुआ।

  • लंबी चर्चा और कानूनी दबावों के बाद 1943 में गुरु गोलवलकर ने आदेश जारी कर शाखाओं में सैन्य प्रशिक्षण बंद करने को कहा।

  • इसी फैसले के साथ सरसेनापति का पद भी खत्म कर दिया गया और मार्तंडराव जोग ने इस्तीफा दे दिया।

यूनिफॉर्म में बदलाव

शुरुआत में संघ की वर्दी पूरी तरह सैन्य जैसी थी – खाकी कमीज और खाकी निकर। लेकिन ब्रिटिश कानून लागू होने के बाद यह बदल दी गई।

  • स्वयंसेवकों की कमीज का रंग सफेद कर दिया गया।

  • निचला हिस्सा (खाकी निकर) वैसा ही रखा गया, जिसे बाद में बदलकर भूरे रंग की पैंट कर दिया गया।

संघ की पहचान का बदलता स्वरूप

RSS का यह शुरुआती इतिहास बताता है कि संगठन ने समय और परिस्थितियों के अनुसार अपने ढांचे और प्रतीकों को बदला। सरसेनापति पद का हटना और यूनिफॉर्म में परिवर्तन इस बात का उदाहरण है कि संघ ने कानूनी और सामाजिक दबावों के अनुरूप खुद को ढाला और आगे बढ़ता रहा।

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